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२३६. जह बालो जंपन्तो, कज्जमकज्जं च उज्जुयं भणइ ।
तं तह आलोइज्जा, मायामयविप्पमुक्को वि ॥१०॥
जैसे बालक अपने कार्य-अकार्य को सरलतापूर्वक माँ के समक्ष व्यक्त कर देता है, वैसे ही हमें भी अपने समस्त दोषों की आलोचना माया-मद (छल-छद्म) त्यागकर करनी चाहिए।
૨૩૬. જેવી રીતે બાળક પોતાના સારા-નરસા કાર્યનો મા પાસે
સરળ રીતે એકરાર કરે છે, તેવી જ રીતે આપણે પણ આપણા બધા દોષોની આલોચતા, માયા મદ ત્યજીને કરવી જોઈએ.
236. Just as an infant/child confesses his good or
bad acts before its mother with frankness, in the same manner, we should review and criticise all our faults and sins without hiding and being egoistc with pride.
२३७-८. जह कंटएण विद्धो, सव्वंगे वेयणिदिओ होइ ।
तह चेव उद्धियम्मि उ, निस्सल्लो निव्वुओ होइ ॥११॥
एवमणुद्धियदोसो, माइल्लो तेणं दुक्खिआ हाइ । सो चेव चत्तदोसो, सुविसुद्धो निव्वुओ होइ ॥१२॥
जैसे काँटा चुभने पर सारे शरीर में वेदना होती है और काँटे के निकल जाने पर शरीर निःशल्य अर्थात् सर्वांग सुखी हो जाता है, वैसे ही अपने दोषों को प्रकट न करने वाला मायावी दुःखी या व्याकुल रहता है और उनको गुरु के समक्ष प्रकट
कर देने पर सुविशुद्ध होकर सुखी हो जाता है । (43R SSSSSSSSSSSSSSSSSSC पी वेल)