Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
English translation preserving Jain terms:
The Shri Sutrakritanga Sutra repeatedly and enthusiastically inflicts extremely unbearable suffering on those whose bitter fruits have manifested.
The wicked, ignorant nether world guardians separate the limbs of the nether world beings. I shall explain to you the reason for this truthfully. The childlike ones are reminded there by all the punishments of their past deeds.
Commentary: The word 'na' is a figure of speech. The sinful nether world guardians disintegrate the body parts of the nether world beings through methods like cutting, for which the author explains the reason - I shall expound to you the true cause. The unintelligent nether world guardians remind them through various punishments, just as you used to joyfully cut and consume the flesh of other beings, drink their juices, and indulge in adultery; now, tormented by the fruits of those same deeds, why are you howling and shrieking? In this way, the nether world guardians inflict suffering similar to the punishments given by them in the previous birth, thereby tormenting them.
They, being struck down, fall into the nether world, in the great torment of the deformed one. There they stand, devourers of the deformed, satisfied by the worms that have arisen from their karmas.
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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम् पुनः पुनः उत्साह के साथ विभिन्न प्रकार से अत्यन्त असह्य दुःख देते हैं, जिनके कटु फलप्रद उदय में आये हुए हैं।
पाणेहि णं पाव विओजयंति, तं भे पवक्खामि जहातहेणं । दडेहिं तत्था सरयंति बाला, सव्वेहिं दंडेहि पुराकएहिं ॥१९॥ छाया - प्राणैः पापा वियोजयन्ति, तद् भवम्भेः प्रवक्ष्यामि याथातथ्येन ।
दण्डैस्तत्र स्मरयन्ति बालाः सर्वेः दण्डैः पुराकृतैः ॥ अनुवाद - पापी अज्ञानी नरक पाल नारक जीवों के शरीर के अंगों को नियोजितकर-काट काट कर पृथक्-पृथक् कर देते हैं । इसका कारण मैं आपको यथावत रूप में बतलाता हूँ । उन प्राणियों द्वारा अपने पूर्व भव में दूसरे प्राणियों को दिए गए दण्ड के अनुसार ही वे उन्हें दण्डित कर-पीड़ित कर उनके पूर्वकृत कर्मों को स्मरण कराते हैं।
टीका- 'णमिति' वाक्यालङ्कारे, प्राणैः' शरीरेन्द्रियादिभिस्ते पापाः' पापकर्माणो नरकपाला 'वियोजयन्ति' शरीरावयवानां पाटनादिभिः प्रकारैविकर्तनादवयवान् विश्लेषयन्ति, किमर्थमेवं ते कुर्वन्तीत्याह-'तद्' दुःखकारणं 'भे' युष्माकं 'प्रवक्ष्यामि याथातथ्येन' अवितथं प्रतिपादयामीति, दण्डयन्ति-पीडामुत्पादयन्तीति दण्डा-दुः खविशेषास्तै रकाणामापादितैः 'वाला' निर्विवेका नरकपालाः पूर्वकृतं स्मारयन्ति, तद्यथा-तदा हृष्टस्त्वं खादसि समुत्कृत्योत्कृत्य प्राणिनां मांसंतथा पिबसि तद्रसंमद्यं च गच्छसि परदारान् साम्प्रतं तद्विपाकापादितेन कर्मणाऽभितप्यमानः किमेवं रारटीषीत्येवं सर्वैः पुराकृतैः 'दण्डैः' दु:खविशेषैः स्मारयन्तस्तादृशभूतमेव दुःखविशेषमुत्पादयन्तो नरकपाला: पीडयन्तीति ॥१९॥ किञ्च -
टीकार्थ - इस गाथा में 'ण' शब्द वाक्यालंकार के रूप में आया है । पापकर्मा नरकपाल नारक जीवों के शरीर के अवयवों को काट काट कर अलग कर देते हैं, वे ऐसा क्यों करते हैं, इसका निराकरण करते हुए सूत्रकार कहते हैं-मैं इसका कारण सही सही बतलाता हूँ । विवेकशून्य नरकपाल नारक जीवों को भिन्नभिन्न प्रकार से दण्ड देकर उन द्वारा पहले किये गए कर्मों को याद कराते हैं, जैसे तुम बड़े हृष्ट-प्रसन्न होकर प्राणियों का मांस काट काट कर खाते थे । उसका रस पीते थे, मद्यपान तथा परस्त्रीगमन करते थे, अब उन्हीं कर्मों का फल भोगते हुए तुम इस प्रकार क्यों चीख रहे हो, चिल्ला रहे हो, इस तरह नरकपाल नारक जीवों द्वारा पहले के जन्म में दूसरे प्राणियों को दिए गए दण्ड-उन्हें दी गई यातनाओं को स्मरण कराते हुए उनके सदृश ही उन्हें दुःख देते हैं, पीडित करते हैं ।
ते हम्माणा णरगे पडंति, पुन्ने दुरुवस्स महामितावे । ते तत्थ चिटुंति दुरुवभक्खी, तुटूंति कम्मोवगया किमी हं ॥२०॥ छाया - ते हन्य माना नरके पतन्ति, पूर्णे दुरूपस्य महाभितापे । ते तत्र तिष्ठन्ति दुरुपभक्षिणः, तुट्यन्ते कर्मोपगताः कृमिभिः ॥
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