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________________ २९६ ] [ कर्मप्रकृति प्रथम समय में अल्प दलिक उपशमाता है, उससे द्वितीय समय में असंख्यात गुणित और उससे भी तृतीय समय में असंख्यात गुणित दलिक उपशमाता है । इसी प्रकार यही क्रम दो समय कम दो आवलिका काल के द्वि चरम समय तक कहना चाहिये और पर प्रकृतियों में प्रति समय दो आवलि काल तक यथाप्रवृत्तसंक्रम से संक्रमाता है। परंतु प्रथम स्थिति में बहुत दलिक संक्रमाता है द्वितीय स्थिति में विशेषहीन और तृतीय समय में उससे भी अधिक विशेषहीन दलिक संक्रमाता है । इस प्रकार चरम समय तक विशेषहीन, विशेषहीन कर्मदलिक संक्रमाता है। तत्पश्चात् पुरुषवेद उपशांत हो जाता है । उस समय संज्वलन कषायों का स्थितिबंध अन्तर्मुहूर्त कम बत्तीस वर्ष प्रमाण होता है और शेष कर्मों का अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय का स्थितिबंध संख्यात सहस्र वर्ष का होता है। तथा – तिविहमवेओ कोहं, कमेण सेसे वि तिविहतिविहे वि। पुरिससमा संजलणा, पढमठिइ आलिगा अहिगा॥ ४८॥ शब्दार्थ – तिविहं – तीन प्रकार के, अवेओ - अवेदक हुआ, कोहं – क्रोध को, कमेण – अनुक्रम से, सेसे वि - शेष भी, तिविह तिविहे – तीन तीन प्रकार की कषायों को, विऔर, पुरिससमा – पुरुषवेद के समान, संजलणा - संज्वलन की, पढमठिइ - प्रथमस्थिति, आलिगा अहिगा - एक आवलिका अधिक। गाथार्थ – अवेदक हुआ वह तीन प्रकार के क्रोध को उपशमाता है और अनुक्रम से शेष भी तीन तीन प्रकार की मानादि कषायों को उपशमाता है। संज्वलन की उपशमना पुरुषवेद के समान जानना चाहिये, किन्तु प्रथमस्थिति एक आवलिका अधिक है। विशेषार्थ – जिस समय उपशमश्रेणी पर आरूढ जीव पुरुषवेद का अवेदक होता है, उसी समय से ले कर अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन क्रोधों को एक साथ उपशमित करना प्रारम्भ करता है। उपशमन करते हुए प्रथमस्थितिबंध के पूर्ण होने पर संज्वलन कषायों का अन्य स्थितिबंध संख्यात भागहीन होता है और शेष कर्मों का संख्यात गुणहीन होता है। शेष स्थितिघात आदि कार्य होना पूर्व के समान जानना चाहिये। संज्वलन क्रोध की प्रथमस्थिति में एक समय कम तीन आवलिका शेष रह जाने पर अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण क्रोध के दलिक को संज्वलन क्रोध में प्रक्षेप नहीं करता है, किन्तु संज्वलन मान आदि में प्रक्षेप करता है। दो आवलिका काल शेष रह जाने पर आगाल तो नहीं होता है, किन्तु उदीरणा ही होती है और वह उदीरणा भी एक आवलिका शेष रहने तक होती रहती
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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