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[ कर्मप्रकृति
गाथार्थ – शेष का अर्थात् अंतिम खंड का गुणसंक्रम के द्वारा अपहार काल अल्प है, उससे क्रमशः यथाप्रवृत्तसंक्रम, विध्यातसंक्रम और उद्वलनासंक्रम में अपहार काल असंख्य गुण है।
विशेषार्थ - उद्वलनासंक्रम का कथन करते समय जो पहले चरम खंड कहा है उसको यहां 'शेष' पद से कहा गया है। उस शेष खंड का यदि गुणसंक्रम के प्रमाण से अपहार किया जाये तो अंतर्मुहूर्त मात्र काल से वह सर्व ही अपहृत हो जाता है। इसलिये गुणसंक्रम के द्वारा अपहार काल सबसे कम है। उस से यथाप्रवृत्तसंक्रम के द्वारा अपहारकाल असंख्यात गुणा है। क्योंकि यदि वही चरमखंड यथाप्रवृत्तसंक्रम के द्वारा अपहृत किया जाये तो पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाणकाल के द्वारा अपहत होता है। यथाप्रवृत्तसंक्रम के अपहारकाल से विध्यातसंक्रम का अपहारकाल असंख्यात गुणा है। क्योंकि यदि वही चरम खंड विध्यातसंक्रम के द्वारा अपहत किया जाये तो असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीकाल के द्वारा अपहृत होता है। विध्यातसंक्रम के अपहार काल से उद्वलनासंक्रम का अपहार काल असंख्यात गुणा है। क्योंकि यदि वही चरम खंड द्विचरम स्थिति खंड के चरम समय में पर प्रकृति में प्रक्षेपण किया जाये और यदि उसी प्रमाण से अपहृत किया जाये तो बहुत अधिक असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीकाल के द्वारा अपहृत होगा। इसलिये विगत अपहार काल से यह उद्वलनासंक्रम का अपहार काल असंख्यात गुणा है।
___ पूर्व में यथाप्रवृत्तसंक्रम का काल नहीं कहा है तथा उद्वलनासंक्रम में द्विचरम स्थितिखंड का चरम समय में जो कर्मदलिक स्वस्थान में प्रक्षिप्त किया जाता है, उस प्रमाण से शेष चरम स्थितिखंड का अपहार काल भी नहीं कहा है। अतः अब उसका निरूपण करते हैं -
पल्लासंखियभागेण - हापवत्तेण सेसगवहारो।
उव्वलणेण वि थिबुगो, अणुइन्नाए उ जं उदए॥ ७१॥ शब्दार्थ – पल्लासंखियभागेण – पल्योपम के असंख्यातवें भाग काल से, अहापवत्तेण - यथाप्रवृत्त संक्रम द्वारा, सेसगवहारो - शेष का अपहार, उव्वलणेण – उद्वलनासंक्रम के द्वारा, वि - भी, थिबुगो - स्तिबुकसंक्रम, अणुइनाए – अनुदित प्रकृति का, उ – और, जं – जो, उदए – उदयवती प्रकृति में।
गाथार्थ – यथाप्रवृत्तसंक्रम और उद्वलनासंक्रम के द्वारा जो चरम खंडगत दलिक का अपहार होता है, वह पल्योपम के असंख्यात भाग प्रमाण काल में होता है तथा अनुदयवती प्रकृति का सजातीय उदयवती प्रकृति में भी संक्रम होता है वह स्तिबुकसंक्रम कहलाता है।
विशेषार्थ – उद्वलनासंक्रम में जो चरम स्थितिखंड है, उसका यदि यथाप्रवृत्तसंक्रम के प्रमाण से अपहार किया जाये तो वह पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण काल के द्वारा निःशेष रूप से अपहृत होता