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आचार्यश्री द्वारा प्रदत्त महत्त्वपूर्ण विषयों को संपादक ने अपनी भाषा में आबद्ध किया है । इस संपादन में यदि आचार्यश्री का चिन्तन यथावत् न आ पाया हो और कोई सैद्धान्तिक त्रुटि रह गयी हो तो वह गलती हमारी है, इसके लिये हम आचार्यश्री से हार्दिक क्षमायाचना करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि समय पर त्रुटि का परिमार्जन करने की कृपा करें।
पाठको ! परम प्रसन्नता का विषय है कि कर्मसिद्धान्त के रहस्यों को उद्घाटित करने वाला महान् ग्रंथ 'कर्मप्रकृति' हिन्दी अनुवाद के रूप में हम लोगों के बीच में आ रहा है । विश्व का प्रत्येक मानव सुखाभिकांक्षी
। सुख चाहते हैं । सभी को जीवन प्रिय है--"सर्वसि जीवयं पियं", दुःखी कोई नहीं बनना चाहता, तथापि आश्चर्य है कि मानव दुःखी, संतप्त व पीड़ित ही दिखलाई देता है, इसका क्या कारण है ? मल रूप में इसका कारण स्वयं के 'कर्म' हैं । इन कर्मों को समझे बिना दुःख से मुक्ति एवं सुख की अवाप्ति नहीं हो सकती। सुख पाने के लिये 'कर्मसिद्धान्त' का ज्ञान आवश्यक है। प्रस्तुत ग्रन्थ का गहनता से अध्ययन करने पर हमें कर्म-सिद्धान्त के समग्र स्वरूप का ज्ञान हो सकेगा, जिसके कारण जगत की आत्माएं दुःखी हो रही हैं । इसका विज्ञान प्राप्त कर अपने आपको इससे विलग करने का प्रयास करेंगे तो अवश्य ही परम सुख को प्राप्त करने में समर्थ हो सकेंगे ।
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इसी सद्भावना के साथ--
दस्साणियों का चौक बीकानेर (राज.) ३३४ ००१
सुन्दरलाल तातेड़
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