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________________ २३० कर्मप्रकृति .... ५. गाथा ९ में कहा है कि श्रेणी के असंख्यात भाग प्रमाण स्पर्धकों का एक योगस्थान होता है। जो सबसे जघन्य है। परन्तु असत्कल्पना से प्रथम योगस्थान छह स्पर्धकों का समझ लेना चाहिये। अधिक-अधिक वीर्य वाले योगस्थानों में स्पर्धक अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण बढ़ते-बढ़ते हुए जानना चाहिये। क्योंकि अधिक-अधिक वीर्य वाले आत्मप्रदेश हीन होते जाते हैं, किन्तु उनमें वर्गणायें और स्पर्धक अधिक-अधिक होते हैं। यहां असत्कल्पना से बताये जा रहे योग स्थानों में एक-एक स्पर्धक की वृद्धि अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण समझना चाहिये। ६. गाथा ९ में स्पष्ट किया गया है कि प्रथम योगस्थान के अन्तिम स्पर्धक की अंतिम वर्गणा में जितने वीर्याविभाग हैं, उससे द्वितीय योगस्थान के प्रथम स्पर्धक की प्रथम वर्गणा में असंख्यात गुणे वीर्याविभाग हैं। परन्तु यहाँ असत्कल्पना से लगभग तिगुने समझना चाहिये। - असत्कल्पना से किये गये उक्त स्पष्टीकरणों से युक्त योगस्थानों का प्रारूप-विवरण इस प्रकार समझना चाहिये प्रथम योगस्थान प्रथम स्पर्धक ---------------2-कसेड़ १. वीर्याविभाग वाले . ७०० आत्मप्रदेशों की प्रथम वर्गणा .. ... १ करोड २ , , , ६७० " " " द्वितीय वर्गणा १ करोड़ ३ , , , तृतीय वर्गणा ... . १ करोड ४ ॥ ॥ ॥ ... चतुर्थ वर्गणा २६०० इस प्रकार प्रथम स्पर्धक में २६०० आत्मप्रदेश एवं चार वर्गणायें । द्वितीय स्पर्धक .. . -२ करोड १ वीर्याविभाग वाले ५८५ आत्मप्रदेशों की . ५७५ , , , प्रथम वर्गणा द्वितीय वर्गणा तृतीय वर्गणा चतुर्थ वर्गणा २२८० - इस प्रकार द्वितीय स्पर्धक में २२८० आत्मप्रदेशों की चार वर्गणायें। तृतीय स्पर्धक ३ करोड १ वीर्याविभाग वाले ५२० आत्मप्रदेशों की ५१० , , , प्रथम वर्गणा द्वितीय वर्गणा तृतीय वर्गणा चतुर्थ वर्गणा २०२० . .
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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