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________________ बंधनकरण ३. मोहनीयकर्म-जधन्यपद में अप्रत्याख्यानावरण मान का प्रदेशाग्र सबसे कम है, उससे अप्रत्याख्यानावरण क्रोध का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे अप्रत्याख्यानावरण माया का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे अप्रत्याख्यानावरण लोभ का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है। इसी प्रकार उससे उत्तरोत्तर के क्रम से प्रत्याख्यानावरण मान, क्रोध, माया, लोभ और अनन्तानुबंधी मान, क्रोध, माया, लोभ का प्रदेशाग्र विशेषाधिक कहना चाहिये। अनन्तानुबंधी लोभ से मिथ्यात्व का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे जुगुप्सा का प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है, उससे भय का विशेषाधिक है, उससे हास्य-शोक का विशेषाधिक है, किन्तु स्वस्थान में उन दोनों का परस्पर समान है, उससे रति-अरति का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, किन्तु स्वस्थान में उन दोनों का भी परस्पर में तुल्य है । उनसे अन्यतर एक वेद का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे संज्वलन मान, क्रोध, मायां और लोभ का प्रदेशाग्र उत्तरोत्तर विशेषाधिक है । ४. आयुकर्म-जघन्यपद में तिर्यंच और मनुष्यायु का प्रदेशाग्र सबसे कम है, उससे देव और नरकायु का प्रदेशाग्र असंख्यगुणा है । ५. नामकर्म-इसके गति भेद में जघन्यपद में तियंचगति का प्रदेशाग्र सबसे कम है, उससे मनुष्यगति का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे देवगति का प्रदेशाग्र असंख्यगुणा है, उससे नरकगति का प्रदेशाग्र असंख्यगुणा है । ..... ___ जातिनामकर्म में द्वीन्द्रियादि चार जातिनामकर्मों का प्रदेशाग्र सबसे कम हैं, उससे एकेन्द्रियजाति का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है । शरीरनामकर्म में औदारिकशरीरनामकर्म का प्रदेशाग्र सबसे कम है, उससे तेजसशरीरनामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे कार्मणशरीरनामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे वैक्रियशरीरनामकर्म का असंख्यात गुणा है, उससे आहारकशरीर का असंख्यात गुणा है । इसी प्रकार संघातननामकर्म में भी समझना चाहिये। अंगोपांगनामकर्म में जघन्यपद में औदारिकअंगोपांगनामकर्म का प्रदेशाग्र सबसे कम है, उससे वैक्रियअंगोपांगनामकर्म का प्रदेशाग्र असंख्यात गुणा है, उससे आहारकअंगोपांगनामकर्म का असंख्यात गुणा है तथा जघन्यपद में नरकगत्यानुपूर्वी और देवगत्यानुपूर्वी का प्रदेशाग्र सबसे कम है, उससे मनुष्यगत्यानुपूर्वी का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे भी तिर्यंचगत्यानुपूर्वी का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है तथा वसनामकर्म का प्रदेशाग्र सबसे कम है, उससे स्थावरनामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है। इसी प्रकार बादर-सूक्ष्म, पर्याप्त-अपर्याप्त, प्रत्येक-साधारण नामकर्मों का अल्पबहुत्व जानना चाहिये । . ...... . ... .................. उक्त प्रकृतियों के अतिरिक्त नामकर्म की शेष प्रकृतियों का अल्पबहुत्व नहीं है ।' १. सारांश यह कि उक्त प्रकृतियों के अतिरिक्त शेष प्रकृतियों का जघन्यपद संबंधी अल्पबहुत्व नहीं है।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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