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________________ जुगुप्सा का प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है, उससे भय का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे हास्य और शोक का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, किन्तु स्वस्थान में दोनों का ही प्रदेशाग्र परस्पर तुल्य है, उससे रति-अरति का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, किन्तु स्वस्थान में दोनों का परस्पर तुल्य है, उससे स्त्रीवेद और नपुंसकवेद का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, किन्तु स्वस्थान में दोनों का ही परस्पर तुल्य है, उससे संज्वलन क्रोध का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे संज्वलन मान का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे पुरुषवेद का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे संज्वलन माया का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे संज्वलन लोभ का प्रदेशाग्र असंख्यात गुणा है। ५. आयुकर्म–उत्कृष्ट पद में चारों आयुओं का प्रदेशाग्र परस्पर तुल्य है। ६. नामकर्म-उत्कृष्ट पद की अपेक्षा गति में देवगति और नरकगति का प्रदेशाग्र सबसे कम है, उससे मनुष्यगति का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे .तियंचगति का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है। जातिनामकर्म में द्वीन्द्रियादि चारों जातिनामकर्मों का उत्कृष्ट पद में प्रदेशाग्र सबसे कम है, किन्तु स्वस्थान में उनके प्रदेशाग्र परस्पर तुल्य हैं । उनसे एकेन्द्रिय जातिनामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है। शरीरनामकर्म में उत्कृष्ट पद में आहारकशरीर का प्रदेशाग्र सबसे कम है, उससे वैक्रियशरीर नामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे औदारिकशरीर नामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे तेजसशरीर नामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे भी कार्मणशरीर नामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है। इसी प्रकार (शरीरनामकर्म के समान) संघातननामकर्म का भी अल्पबहुत्व जानना चाहिये। बंधननामकर्म के उत्कृष्ट पद में आहारक-आहारक बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र सबसे कम है, उससे आहारक-तैजस बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक' है, उससे आहारक-कार्मण बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे आहारक-तैजस-कार्मण बंधननामकर्म का प्रदेशान विशेषाधिक है, उससे वैक्रिय-वैक्रिय बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे वैक्रिय-तेजस बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे वैक्रिय-कार्मण बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे वैक्रिय-तंजस-कार्मण बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे औदारिक औदारिक बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे औदारिक-तैजस बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे औदारिक-कार्मण बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे औदारिक-तैजस-कार्मण बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है। उससे तेजस-तैजस बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे तैजस-कार्मण बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है, उससे कार्मण-कार्मण बंधननामकर्म का प्रदेशाग्र विशेषाधिक है। ___ संस्थाननामकर्म में आदि (समचतुरस्रसंस्थान) और अंतिम हुंडसंस्थान, इन दो संस्थानों को छोड़कर मध्य के चार संस्थानों का उत्कृष्ट पद में प्रदेशाग्र सबसे कम है, किन्तु स्वस्थान में
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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