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श्री कुंदकुंदस्वामीकी जयघोषणाका मुख्य कारण उनके द्वारा प्रतिपादित वस्तुतत्त्वका, विशेषतया आत्मतत्त्वका विशद वर्णन है। स्वानुभूतिके स्थंभ समान समयसारादि ग्रंथोंमें उन्होंने परसे भिन्न तथा स्वकीय गुण-पर्यायोंसे अभिन्न आत्माका जो वर्णन किया है वह अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने उन ग्रंथोंमें अध्यात्मधारारूप जिस मंदाकिनीको प्रवाहित किया है, उसके शीतल और पावन प्रवाहको अवगाहनकर भवभ्रमण श्रान्त मुमुक्षुवृंद शाश्वत शांतिको प्राप्त करते हैं। उनके शास्त्र साक्षात् गणधरदेवके वचन जैसे ही प्रमाणभूत माने जाते हैं। उनके पश्चात् हुए ग्रंथकार आचार्योंने अपना कथन सिद्ध करनेके लिये कुंदकुंदाचार्यदेवके शास्त्रोंका प्रमाण अनेक जगह दिया है, जिससे उनका कथन निर्विवाद सिद्ध होता है और उनकी परंपराका कहलानेमें पश्चात्वर्ती आचार्य अपना गौरव अनुभवते हैं।
___आचार्य कुंदकुंदाचार्यदेवके विषयमें एक ऐसी भी कथा चलती है, कि आपको विदेहक्षेत्रस्थ सीमंधर प्रभुका बहुत ही विरह महसूस हुआ था। इस संदर्भमें सीमंधरप्रभुकी दिव्यध्वनिमें “सद्धर्मवृद्धिः अस्तु" आया था। सभामें लोगोंको आश्चर्य होता है, कि यह संधिहीन ध्वनि परिषदमें क्यों आई ? उस समय वहाँ बैठे भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवके
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श्री कुंदकुंदाचार्यदेवका विदेहस्थ सीमंधर भगवानके समवसरणमें जाना व वहाँसे आकर
समयसारादि ग्रंथोंकी रचना करना
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