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यद्यपि आचार्यवर यतिवृषभने अपने कसायपाहुड़के चूर्णिसूत्रोंमें आर्यमंक्षु और नागहस्तिको गुरुके रूपमें उल्लिखित नहीं किया है और न अन्य किसी आचार्यको अपने गुरुके रूपमें उल्लेख किया है । फिर भी आचार्य इन्द्रनन्दिके श्रुतावतार ग्रंथमें आर्यमक्षु और नागहस्तिको गुणधराचार्यका शिष्य बताया गया है । यह परम्परारूपसे शिष्यत्व हो ऐसा प्रतीत होता है। कषायपाहुड़ ग्रंथकी टीका जयधवलामें उल्लेख है कि, 'गुणधरके मुखकमल से निकली हुई गाथाओंके अर्थको जिनके पादमूलमें सुनकर यतिवृषभने चूर्णिसूत्र रचे' । अतः इस परसे यह स्पष्ट होता है, कि इन दोनों आचार्योंके परम्परा गुरु गुणधराचार्य होंगे। गुणधराचार्यने कसायपाहुडकी सूत्रगाथाओंको रचकर स्वयंहीने उनकी व्याख्या करके आर्यमक्षु और नागहस्तिको पढ़ाया व आचार्यवर आर्यमंक्षु और नागहस्तिके पादमूलमें रहकर आचार्य यतिवृषभने 'कसायपाहुड़' के चूर्णिसूत्र रचे ।
इतिहासकारोंका मानना है, कि गुणधराचार्य द्वारा विर्निगत पेजदोषपाहुड़की १८० गाथा परसे नागहस्ति आचार्यने उसे २३३ गाथामें लिपिबद्ध किया हो, अथवा गुणधराचार्य द्वारा ही २३३ गाथा विनिर्गत हुई हों, जिसे नागहस्ति आचार्यने लिपिबद्ध किया हो या आचार्य यतिवृषभने चूर्णिसूत्रों सह लिपिबद्ध किया हो ।
आप दोनों आचार्यवरोंका महान् गुणधर आचार्य से सीधा संबंध होने या प्रवाहरूप संबंध होनेके लिए विविध उल्लेख शास्त्रमें मिलते हैं, परन्तु विद्वत वर्ग उसमें एकमत नहीं है, फिर भी उन सब उल्लेखों परसे यह तो स्पष्ट हो जाता है, कि आचार्यदेव आर्यमंक्षु व नागहस्तिका आचार्य गुणधरदेवसे सीधा संबंध होनेके बारेमें सुस्पष्टतया 'ना' नहीं कहा जा सकता है । पर तीनोंके काल परसे यह योग्य प्रतीत नहीं होता है।
उभय आचार्यवरोंके बारेमें श्वेताम्बर परम्परासे कतिपय जानकारी मिलती है । जैसे : (१) श्वेताम्बर आम्नायी नन्दिसूत्रकी पट्टावलीमें आचार्य आर्यमंक्षुका परिचय देते हुए लिखा है, कि 'वे सूत्रोंके अर्थव्याख्याता हैं, साधुपदोचित क्रियाकलापके करनेवाले हैं, धर्मध्यानके ध्याता व विशिष्ट अभ्यासी हैं, धीर-वीर हैं, परीषह और उपसर्गोंको सहन करनेवाले हैं एवं श्रुतसागरके पारगामी हैं'।
( २ ) इसी नन्दीसूत्रकी पट्टावलीमें आचार्य नागहस्तिका परिचय देते हुए लिखा है, कि ' वे संस्कृत और प्राकृत भाषाके व्याकरणोंके वेत्ता हैं, करणभंगी अर्थात् पिण्डशुद्धि, समिति, भावना, प्रतिज्ञा, इन्द्रियनिरोध, प्रतिलेखन और अभिग्रहकी नानाविधियोंके ज्ञाता हैं और कर्मप्रकृतियोंके प्रधानरूपसे व्याख्याता हैं ।'
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