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भविष्यवाणीमें इतिहासविदोंके भिन्न-भिन्न मत होनेसे उसे गौण करके इतिहासकारोंके अभिप्राय अनुसार आचार्य पुष्पदंत वसुन्धरा नगरीके राजा नरवाहन थे। आचार्य पुष्पदंत राजा जिनपालितके समकालीन तथा उनके मामा थे। इस परसे यह अनुमान किया जा सकता है, कि राजा जिनपालितकी राजधानी ' वनवास ही आपका जन्मस्थान है। आप वहाँसे चलकर अर्हलि आचार्य स्थान पुण्ड्रवर्धन आये और उनसे दीक्षा लेकर तुरंत उनके साथ ही महिमानगर चले गये जहाँ अर्हद्बलिने बृहद् यति सम्मेलन एकत्रित किया था ।
जब महिमा नगरीमें सम्मिलित यतिसंघको धरसेनाचार्यके समाचार मिले, तब आचार्यवर अर्हद्बलिने श्रुत-रक्षासंबन्धी उनके अभिप्रायको समझकर अपने संघमेंसे दो साधु चुने। वे दोनों साधु विद्याग्रहण करने और उसका स्मरण रखनेमें समर्थ, अत्यंत विनयशील, शीलवान्, देश, कुल, जातिसे शुद्ध और समस्त कलाओंमें पारंगत थे। उन दोनोंको धरसेनाचार्यके पास गिरिनगर ( गिरनार ) भेज दिया । धरसेनाचार्यने उनकी परीक्षा की । एकको अधिकाक्षरी और दूसरेको हीनाक्षरी मंत्र-विद्या देकर उन्हें षष्ठोपवाससे सिद्ध करनेको कहा। जब विद्याएँ सिद्ध हुई तो एक बड़े-बड़े दांतोंवाली और दूसरी कानी, देवी प्रकट हुई। उन्हें देख कर चतुर साधक मुनियोंने जान लिया कि उनके मंत्रोंमें कुछ त्रुटि है। उन्होंने स्वयं विचारपूर्वक
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आचार्य पुष्पदंत व भूतबलिजी द्वारा मन्त्र ध्यानसे प्रकट हुई देवीयाँ
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જયદેવ