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स्वप्न ३ : 'नभरूपी आँगनमें उलटे हुए इन्द्र विमान'का फल : इस पंचमकालमें यहाँ चारण-ऋद्धिधारी मुनि नहीं आयेंगे। कल्पवासी देवोंका भी आगमन निषिद्ध रहेगा। (इसको भी उत्सर्ग कथन समझना चाहिए, क्योंकि कुंदकुंदाचार्यदेव चारणऋद्धिके बल विदेहक्षेत्रमें सीमंधर स्वामीके दर्शनार्थ हेतु गये व वापस आये थे। वैसा ही कुछ पूज्यपादस्वामीके बारेमें भी गिना जाता है।) स्वप्न ४ : १२ फणवाले सर्प'का फल : १२ वर्षका मगधमें अकाल । (यह इतिहासके अनुसार योग्य प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि १२ वर्षका अकाल करीब ३०० वर्ष पूर्व हुआ था। या इसका संकेत यह हो सकता है, कि भविष्यमें किसी समय ऐसी स्थिति हो।) स्वप्न ५ : 'चन्द्रमण्डलमें भेद'का फल : लोकमें मुनि और जिनदर्शन (जिनमत)का भेद होगा। (लोकका अर्थ तीन लोक न समझ, मात्र इस कालमें यहाँ भरतक्षेत्र मात्रको ही लोकके रूपमें समझना चाहिए।) स्वप्न ६ : 'जूझते हुए काले हाथीयों'का फल : मेघ यहाँ समयसर व पूर्ण प्रमाणमें नहीं बरसेंगे। वज्राग्नि (बिजली-शिखा) पृथ्वीमण्डलको नष्ट करेगी। अतः लोग पानीके लिए झझूमते रहेंगे। स्वप्न ७ : ‘खद्योतो'का फल : शुभकर्मको (वीतराग शासनको) प्रकट करनेवाले आगमके पदोंको मुखमें धारण करनेवाले साधु बहुत कम होंगे। स्वप्न ८ : 'सरोवरके मध्यमें सूखा'का फल : मध्यदेशमें धर्मका नाश होगा। स्वप्न ९ : 'धूमदर्शन'का फल : दुर्जन-जन घर-घरमें दोषोंको ग्रहण करनेवाली कथाएँ करनेवाले होंगे। स्वप्न १० : 'सिंहासन पर स्थित वनचर'का फल : भविष्यमें अकुलीन राजा होंगे। विशुद्ध कुलवाले जीव नीच, अकुलीन राजाओंकी सेवा करेंगे व उन्हींकी कृपासे अपना उदर भरेंगे। स्वप्न ११ : 'बड़े-बड़े जंगली कुत्तोंको स्वर्णथालमें क्षीर खाते हुए' का फल : कुलिंग साधु राजाओं द्वारा पूजे जाएँगे व लोग उन्हींके वचनोंका यत्नपूर्वक पालन करेंगे। स्वप्न १२ : 'हाथी पर आरूढ़ बंदर'का फल : महाऋद्धिवाले अर्थात् महाऋद्धिवंत और पुरुषार्थवालों द्वारा हीन अकुलीनजनोंकी सेवा की जायगी।
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