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वशमें कर लिया और अपने घर पर लाये। माता-पिताको वंदन कर राजाके पास गये। राजा श्रेणिक 'स्वामी' के ऐसे कौतुकसे बहुत ही प्रसन्न हुए ।
उसी भांति 'स्वामी'ने राजा श्रेणिकके बड़े मुश्किल लगते कार्य भी पूर्ण किये। एक बार एक विद्याधर राजाको भी हराकर राजा श्रेणिकको बहुत ही प्रसन्न किया। राजा श्रेणिक हमेशां उन्हें राजदरबार में अर्धसिंहासन प्रदान करते थे ।
उन्हीं दिनों इसी नगरके चार श्रेष्ठी अपनी-अपनी धनश्री, कनकश्री, विनयश्री व रूपश्री नामवाली रूपवंती - गुणवंती व उत्तम लक्षणोंवाली कन्याएँ जम्बूस्वामीको प्रदान करनेके हेतु आये। पिता अर्हदासने श्रेष्ठीओंकी बात पत्नीसे कही तो दोनोंने यह बात स्वीकार कर ली व जम्बूस्वामीके साथ चारों कन्याकी सगाई कर दी गई।
एकबार सुधर्मास्वामी महामुनिराजके पास धर्मश्रवण करते हुए सम्यग्दृष्टि 'स्वामी' ज्ञान-वैराग्यकी प्रचुरताको प्राप्त हुए । परंतु माता - पिताको 'स्वामी' के प्रति तीव्र मोहके वशीभूत जान स्वामीकी भगवती जिनदीक्षा लेनेकी भावना होने पर भी दीक्षा नहीं ले सके। उनका भावी प्रबल जान मुनिराजने उन्हें मात्र श्रावकके व्रतादि दिये। वे घरमें उदास रहते थे व राजदरबार में धर्मप्रिय बातें करते थे ।
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वापस वैराग्यकी उग्रता होने पर 'स्वामी' ने भगवती जिनदीक्षाकी हट ली। नगरजनोंको बहुत दुःख हुआ । अर्हदास श्रेष्ठीने चारों कन्याओंके यहाँ यह बात कहलवा दी। चारों श्रेष्ठी बहुत दुःखी चित्त अपनी चारों पुत्रीयोंको समझाने लगे कि अन्य सुन्दर युवान श्रेष्ठी राजकुंवर जैसे युवकसे तुम्हारा पाणिग्रहण करायेंगे — पर वे कुलवन्त घरकी गुणवन्ती कन्याओंने जम्बूस्वामीको ही अपना भावी स्वामी माना था । अतः वे एक की दो नहीं हुई। उन्होंने पितासे कहलवाया की 'स्वामी' से विनती कीजिये, कि मात्र पाणिग्रहण कर कल सुबह दीक्षा ग्रहण कर लें तो भी हमें मंजूर है। हम हमारे शुभ लक्षणोंसे तथा रूप व नयनोंके कटाक्षबाणोंसे उनके मनको हर लेंगे।
'स्वामी' ने यह स्वीकार किया। वे उसी दिन उन चारों कन्याओंसे पाणिग्रहण कर आये। आये हुए महेमानोंका योग्य सत्कार करके, विदा करनेके पश्चात् रात्रिको सुगन्धित शैया पर 'स्वामी' आये। पीछेसे चारों ही कन्याएँ अपने रूप, बुद्धि, नयनोंके कटाक्ष द्वारा, वचनसे ताने आदि देकर विविध श्रृंगाररसयुक्त कथादिसे एक के पश्चात् एक, स्वामीको रीझाने लगी। ज्ञान, वैराग्यकी तीक्ष्ण असिधारासे व रानीयों द्वारा कही गई श्रृंगाररसयुक्त कथाओंको स्वामीने बुद्धि व चातुर्यसे उन्हीं कथाओंको ज्ञान-वैराग्यरूप कथामें परिवर्तित करके
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