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आपके समयमें जिनधर्मके मंदिरोंके निर्माण द्वारा महत्ती प्रभावना हुई, जिससे आपका समय 'दिगम्बर जिनमंदिर निर्माण युग'के रूपमें प्रसिद्ध हो गया।
जैसे बताया गया है, कि आपने गोम्मटसार ग्रंथ अपने शिष्य चामुण्डरायके प्रश्नोंके उत्तररूप बनाया था क्योंकि चामुण्डरायका दूसरा नाम 'गोम्मट' होनेसे उस ग्रंथका नाम 'गोम्मटसार' (गोम्मट अर्थात् चामुण्डरायके प्रश्नके उत्तरका सार') है।
आपके कई अनन्य शिष्य थे। जिसमें चामुण्डराय, माधवचन्द्र त्रिवैध आदि प्रमुख थे। गोम्मटसारादि ग्रंथका अभिसूचक दूसरा नाम ‘पंचसंग्रह; भी है, क्योंकि सिद्धान्तशास्त्रोंमें प्रतिपादित किये जानेवाले पाँचों विषयोंका संक्षिप्तमें यह संग्रहरूप ग्रंथ है।
आप कोई साधारण विद्वान नहीं थे, क्योंकि आपके गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार, क्षपणासार आदि उपलब्ध ग्रंथ आपकी असाधारण विद्वत्ता और 'सिद्धान्तचक्रवर्ती' पदवीके गौरव'को प्रसिद्ध करते हैं।
यद्यपि आपके उपलब्ध ग्रंथोंमें गणितकी प्रचुरता देखकर गणितज्ञ विद्वान तक भी दंग रह जाते हैं व मानने लग जाते हैं, कि आपको गणितकी कोई अपूर्व लब्धि थी, परंतु इसमें कोई सन्देह नहीं, कि आप को गणित तो क्या सिद्धान्तोंकी भी सर्वांगी लब्धि थी।
'तत्त्वार्थसूत्र' ग्रंथकी भांति आपके ग्रंथो पर पाई जानेवाली अनेक टीकाएँ सूचित करती हैं, कि यद्यपि आपकी भाषा सरल है, फिर भी विषयकी गहन व गंभीरता सह है, तभी विविध आचार्योंने उन पर विविध टीकाएँ रची हैं। इस ग्रंथ पर पंडितप्रवर टोडरमलजी रचित 'सम्यग्ज्ञान चंद्रिका' नामकी टीका भी अत्यंत प्रसिद्ध है।
___आपके ग्रंथोंमें पाई जानेवाली कई गाथाएँ आपसे भी प्राचीन ग्रंथोंमें मिलती हैं, इससे स्पष्ट है, कि आपके ग्रंथ प्राचीन आगमग्रंथोंकी परम्परा-श्रेणीरूप महा ग्रंथ हैं।
आपके (१) गोम्मटसार (जीवकाण्ड व कर्मकाण्ड), (२) लब्धिसार, (३) क्षपणासार, (४) त्रिलोकसार ग्रंथ वर्तमानमें उपलब्ध हैं।
इतिहासकारोंनुसार आप करीब ई.स. ९८१के आचार्यवर थे।
आपके ज्ञानप्रधान ग्रंथ गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासारादि ग्रंथों द्वारा २०वीं सदीके | पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी अपनी दृष्टिप्रधान परिणतिको विशेष-विशेष उजागर करते थे
इतना ही नहीं उससे वे मुमुक्षु समाजको भी यत्किंचित् लाभान्वित करते थे। यह सब | आचार्य भगवंत आपकी ही कृपाका फल है।
____महान गणितज्ञ, 'गोम्मटसार' आदि ग्रंथोंके रचयिता आचार्य श्री नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्तीदेवको कोटि कोटि वंदन।
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