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कुछ सैनिकोंको साथ लेकर रथारूढ़ हो वे पोदनपुरकी खोजमें निकल पड़े। चलते-चलते वे श्रवणबेलगोल आए। वहाँ उन्होंने चन्द्रगिरि पर भद्रबाहुस्वामीके चरणोंकी बन्दना की और वहाँ पर पार्श्वनाथ भगवानके दर्शन किए। वहाँ उस युगके महान् आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती भी थे।
चामुण्डरायके दलने रात्रि-विश्रामके लिए श्रवणबेलगोलमें पड़ाव डाला। रात्रिमें चामुण्डरायको स्वप्नमें बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथके अत्यंत भक्त देवने कहा, “पोदनपुर बहुत दूर है। वहाँ बाहुबलीकी मूर्ति कुक्कुट सोसे घिर गई है, उसके दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। वहाँकी तुम्हारी यात्रा कठिन है। अतः प्रातःकाल स्नानादि शुद्धिपूर्वक सामनेकी पहाड़ी पर सोनेका एक तीर चलाओ। जहाँ तीर गिरेगा वहीं बाहुबली प्रकट होकर तुम्हें दर्शन देंगे।" इसी प्रकारका स्वप्न उनकी माता और आचार्य नेमिचन्द्रको भी आया। स्वप्नके आदेशानुसार
और आचार्यके परामर्शके अनुसार चामुण्डरायने वैसा ही करनेका निश्चय किया। जब उन्होंने सोनेका तीर छोड़ा तो आश्चर्य ! बाहुबलीकी स्थूल रूपरेखा प्रकट हो गई।
तत्पश्चात् चामुण्डरायने विपुलराशि द्वारा उस रूपरेखानुसार मुनिन्द्र भगवंत बाहुबलीकी मूर्ति तैयार कराई। उसकी प्रतिष्ठा १३-३-९८१ आचार्यदेव नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीके सानिध्यमें कराई गई। वह ही आजकी जगत्प्रसिद्ध दक्षिण भारतकी मुनिन्द्र भगवंत बाहुबली की मूर्ति है। (उसके हूबहू उससे कुछ छोटी पश्चिम भारतके सुवर्णपुरीमें विराजमान होगी जिससे सुवर्णपुरी एक पश्चिम भारतका दक्षिणभारत जैसा तीर्थ बनेगा।)
गुजरात राज्यके भावनगर जिलेमें स्थित अध्यात्मतीर्थ सोनगढ़(स्वर्णपुरी)में निर्माणाधीन जम्बुद्धीप-बाहुबली जिनायनके बाहुबली मुनिन्द्र भगवंत
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