________________
भगवान आचार्यदेव श्री इन्द्रनन्दि
ईसुकी १०वीं शताब्दीके आचार्य इन्द्रनन्दि ऐसे महान आचार्य हैं, कि जिन्होंने निरंतर अपने आत्मज्ञान-ध्यानकी मस्तीसे, वनमें विचरते हुए, स्वयंके बारेमें कुछ भी न लिखकर अन्य आचार्य भगवंतोंके बारेमें काफी कुछ लिखा। जिससे दिगम्बर जैन आम्नायके मुनि भगवंतों व महासमर्थ आचार्य भगवंतोंकी परंपरा व उनके संबंध यत्किंचित् प्रमाणिक जानकारी मिल पाती है।
भगवान महावीरसे करीबन १४०० वर्ष श्रुतावतार रचयिता पश्चात् (इसुकी दसवीं शताब्दी)के आप आचार्यदेव इन्द्रनन्दिजी
नन्दिसंघदेशीयगणीय आचार्य थे। आपके दीक्षागुरुका नाम वासवनन्दिके शिष्य बप्पनन्दि था। आपके शिक्षागुरुका नाम अभयनन्दि था व आप आचार्य नेमिचंद्र सिद्धान्त चक्रवर्तीके ज्येष्ठ गुरुभाई समान थे।
इन्द्रनंदि आचार्यने १. नीतिसार, २. समयभूषण, ३. इन्द्रनन्दि संहिता, ४. मुनि प्रायश्चित्त प्राभृत, ५. प्रतिष्ठापाठ, ६. पूजाकल्प, ७. शान्तिचक्र पूजा, ८. अंकुरारोपण, ९. प्रतिमा संस्कारारोपण पूजा; १०. ज्वालामालिनी, ११. औषधिकल्प, १२. भूमिकल्प, १३. श्रुतावतार आदि शास्त्रोंकी रचना की है।
वैसे भगवान महावीरके पश्चात् दिगम्बर जैन आचार्योंकी मूल परंपराके इतिहासको 'श्रुतावतार' कहा जाता है। ऐसे 'श्रुतावतार' कुछ आचार्योंने लिखें है। उसमें आचार्य इन्द्रनन्दिका 'श्रुतावतार' प्राकृत गाथाबद्ध है। वैसा ही ई.स. १४००में होनेवाले आचार्य श्रीधरजीने भी श्रुतावतार रचा है। फिर भी आ. इन्द्रनन्दिका 'श्रुतावतार' विशेष प्राचीन है।
आप ई.स. ९३९के आचार्य थे ऐसा इतिहासकारोंका मानना है। 'श्रुतावतार'के रचयिता आचार्य इन्द्रनन्दि भगवंतको कोटि कोटि वंदन।
.
(165)