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भगवान श्री देवसेनाचार्य
देवसेन नामक कई आचार्योंका उल्लेख है। उनमेंसे आप ‘दर्शनसार' ग्रंथके रचयिता हैं।
आपकी रचनाओंसे ज्ञात होता है, कि आपका सम्पर्क धारानगरीसे रहा था। वहीं पर आपने दर्शनसार ग्रंथ रचा था। आपके गुरु-शिष्य या कौटुम्बिक सम्बन्धमें कुछ भी परिचय नहीं मिलता है। आपने अपनी रचना प्राकृत, संस्कृत व अपभ्रंश भाषामें की है।
आलापपद्धतिकी रचना लघुनयचक्रके आधार पर की होनेसे ऐसा निर्णित होता है, कि आपने प्रथम लघुनयचक्र लिखा था।
आपने श्रुतभवन दीपक नयचक्रके अन्तमें आत्मानुभवकी साधनामें होती प्रक्रियामें नय-व्यवस्था किस भांति प्रक्षिण होती जाती है-उसका सुन्दर वर्णन किया
आपकी
रचनाओमें (१) दर्शनसार, (२) आलापपद्धति, (३) लघुनयचक्र, (४) तत्त्वसार, (५) आराधनासार, (६) नयचक्र, (७) श्रुतभवनदीपक नयचक्र भी आपकी रचना प्रतीत होती है।
इतिहासकारोंकी मान्यता अनुसार आपका काल ई.स. ९३३-९५५ प्रतीत होता है।
'दर्शनसार' के रचयिता आचार्य नवधा भक्तिपूर्वक आहार लेते हुए श्री देवसेनस्वामीको कोटि कोटि वंदन ।
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