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अष्टशती, तत्त्वार्थसूत्र, जल्पनिर्णय, वादन्याय, सर्वार्थसिद्धि, तत्वार्थवार्तिक, स्वयम्भूस्तोत्र, युक्त्यानुशासन, सन्मतिसूत्र, रत्नकरण्डकश्रावकाचार, न्यायविनिश्चय, प्रमाणसंग्रह, लघीयस्त्रयी, त्रिलक्षणादर्शन, वादन्यायविचिक्षण, षट्खण्डागम व कई श्वेताम्बर ग्रंथ—ऐसे अनेक ग्रंथोंका अभ्यास था। ऐसा आपके ग्रंथोंमें आये उद्धरणोंसे प्रतीत होता है। उद्धरणोंके अलावा आपके जीवनसे प्रतीत होता है, कि आपको समयसारादि अनेक अध्यात्म शास्त्रोंका भी अभ्यास
था।
आपने नन्दिसंघ अन्तर्गत दीक्षा ग्रहण की थी। आपकी लेखनी परसे स्पष्ट होता है, कि आपने अल्पवयमें अन्तरंगमें आत्मज्ञान प्राप्त कर द्रव्य-भावमय मुनिपना अंगीकार किया था। अतः वे मुनिधर्मकी जीवनचर्याके बारेमें अति ही सुस्पष्टरूपसे भावात्मक (भावलिंगमय) थे।
आपका प्रभाव आपके पश्चात्वर्ती भगवान आचार्य माणिक्यनन्दि, वादिराज, प्रभाचन्द्र, अभयदेव, देवसूरि आदि कई आचार्योंकी रचनाओंमें प्रतीत होता है।
अन्ततः आप बाल-ब्रह्मचारी, महान तपस्वी, सिद्धान्त व दार्शनिकताके प्रखर विद्वान आचार्य थे। आपकी भाषा बड़ी परिमार्जित, संक्षिप्त व प्रभावशाली थी।
आपकी रचनाएँ :-(१) आप्तपरीक्षा (स्वोपज्ञटीका सहित), (२) प्रमाण-परीक्षा, (३) पत्र-परीक्षा, (४) सत्यशासन परीक्षा, (५) श्रीपुर पार्श्वनाथस्तोत्र, (६) विद्यानन्द महोदय, (७) अष्टसहस्त्री, (८) तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार, (९) युक्त्यानुशासनालंकार हैं।
इतिहासकारोंके अनुसार आपका समय ई.स. ७७६ से ८४०के बीच होना निर्णित होता है।
'अष्टसहस्री' व 'तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार' के रचयिता आचार्य विद्यानंदस्वामीको कोटि कोटि वंदन।
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