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नवधाभक्तिपूर्वक आहारदान ग्रहण करते आचार्य रविषेणजी
भारतका भूभाग होना चाहिए ।
यद्यपि आपने पद्मचरित ( पद्मपुराण ) की रचना में विमलसूरिकृत प्राकृत 'पद्मचरियम्' का आधार लेनेपर भी आपकी रचना मौलिक रचना ही हो ऐसा प्रतीत होता है। इस पुराणके कथानायक मुनि रामचन्द्रजी हैं, पर अवान्तर प्रसंग भी हृदयको छू जाए इस तरहसे रखे गए हैं व लेखन शैली सभी रसोंकी गारवताको रखती हुई पाठकके हृदयको लुभाती है।
आपने मात्र एक 'पद्मचरित (पद्मपुराण ) ' ग्रंथकी रचना की है ।
आपके 'पद्मपुराण' की रचना वि.सं. ७३४ अर्थात् ई. स. ६७७ में हुई होनेसे आपका काल ई. स. ६७७ है।
पद्मपुराणके रचयिता आचार्यदेव रविषेण भगवंतको कोटि कोटि वंदन ।
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