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प्रसिद्ध कवि कालिदास भी थे। कालिदासने अपनी विद्वत्ताका प्रभाव दिखानेके लिए मानतुंगाचार्यसे वाद-विवाद प्रारंभ कर दिया। भगवान मानतुंगाचार्यका दार्शनिक व तात्त्विक ज्ञान बहुत उन्नत था। उन्होंने थोड़े समयके विवादमें ही कालिदासको निरुत्तर कर दिया। कालिदास बहुत लज्जित हुए और रात्रिमें कालीदेवीकी आराधना करके, दूसरे दिन भगवान मानतुंगसूरिको राज सभामें बुलाकर शास्त्रार्थ करनेका आग्रह किया। राजाने भगवान मानतुंगसूरिको बुलानेके लिए अपने सिपाही भेजे । परन्तु वे नहीं आए। राजाने भगवान मानतुंगाचार्यको जबरदस्ती पकड़कर बुलाया और कालिदासके साथ शास्त्रार्थ करनेको कहा। भगवान मानतुंगाचार्यने राजाकी आज्ञाका कोई जवाब नहीं दिया, तो राजाने क्रोधित होकर सूरीजीको ४८ कोठोके भीतरवाले कोठेमें बेडियाँ लगाकर बन्द कर दिया
और कड़ा पहरा लगा दिया। रात्रिके पिछले पहरमें सूरिजीने अपने १४८ कर्मोके नाश हेतु, 'भक्तामर स्तोत्र'की रचना की और भक्तिमें लीन होकर स्तोत्रका पाठ किया। पाठ करते हुए जब ४६वाँ 'आपाद-कण्ठमुरु-श्रृङ्खल-वेष्ठिताड़ा' पढ़ने लगे, तब ऐसा चमत्कार हुआ, कि हथकड़ी
और ताले स्वयं टूट गये और वे ४८ कोठोके बाहर आ गये। इस चमत्कारको जानकर राजा भी वहाँ आया और सूरिजीके चरणोंमें नमस्कार कर अपने अपराधकी क्षमा मांगी।
आपकी कवित्व शक्तिको विद्वानोंने राजा भोजके राज्यसभाके कवि कालिदास तथा अन्य कवि भारवी, भर्तृहरि, शुभचन्द्र, धनंजय, कवि बाण व वरुरुचिके समान बिरदाई है।
आपकी मात्र एकही रचना 'भक्तामर स्तोत्र' अति प्रसिद्ध रचना है, जिसमें आचार्यदेवने आदिनाथ भगवानकी स्तुति की है, परन्तु इस स्तोत्रका प्रथम शब्द 'भक्तामर' होनेसे यह स्तोत्र ‘भक्तामर-स्तोत्र'के नामसे प्रसिद्ध है। ___ आप ई.स. ६१८-६५०के आचार्य होंगे— ऐसा इतिहासकारोंका मानना है।
भक्तामर स्तोत्रके रचयिता आचार्यदेव मानतुंगस्वामीको कोटि कोटि वंदन ।
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