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भगवान आचार्यदेव श्री समन्तभद्रस्वामी
जैन जगतके महान आचार्य धरसेनाचार्य, गुणधर आचार्यसे लगाकर कुंदकुंद भगवान, उमास्वामी भगवंत आदि तकके ऐसे आचार्य हुए हैं, जिन्होंने युगसर्जन किया है। अतः वे युगस्रष्टा आचार्य थे। आपके द्वारा ही अंग-पूर्वके विच्छेद होते हुए ज्ञानको, चारों अनुयोगरूप जिनवाणीका मूर्तरूप देनेसे आज भी श्रुतपरम्पराका प्रवाह चालू रहा। यदि ये दिगंत आचार्य ऐसा प्रयास न करते तो शायद आज हम सब आत्मज्ञानकी सच्ची बात कहाँसे प्राप्त करते? आपके पश्चात्वर्ती आचार्य भगवन्तोंने काल दोषसे लोगोंके ज्ञानकी क्षीणता होती देख, आपके ग्रंथोंके आधार पर टीका या (परंपरासे प्राप्त ज्ञान द्वारा) मौलिक ग्रंथकी रचनाकर श्रुतप्रवाहको अविरतरूपसे चालू रखा।
ऐसे आचार्योंमें समन्तभद्राचार्यदेव सर्वप्रथम आचार्य हैं, जो युगसर्जनकर्ता आचार्यों व पश्चात्वर्ती आचार्योंको जोड़ती कड़ीके रूपमें हैं। आप स्तोत्रकाव्यके आद्य रचयिता हैं। आपने अपने जीवनकालमें स्याद्वाद-अनेकान्त शासनको जिन अकाट्य न्यायसे सिद्ध किया है, वह अक्सर जिनेन्द्र भगवंतोंकी स्तुति द्वारा ही किया है। आपको भगवानकी स्तुतिका व्यसन ही हो गया हो, ऐसा आपके साहित्यसे प्रतीत होता है।
आपका जन्म दक्षिणभारतके उरगपुरके 'राजाबलिकथे' में उत्कलिका ग्राममें हुआ था, जो प्रायः उरगपुरके अंतर्गत ही रहा होगा। उरगपुर चोल राजाओंकी प्राचीन ऐतिहासिक राजधानी थी। जिसे आजकल त्रिचनापली' कहते हैं। आप चोल राजवंशके जन्मनाम शान्तिवर्मा नामक नामसे अनुमानित किये जाते हैं, जो कि आपके 'स्तुति-विद्या' नामक ग्रंथके कई काव्योंकी नव वलयवाली चित्र रचनासे प्रतीत होता है। आपका जन्म ई.स. १२०में हुआ हो, ऐसा इतिहासकारोंका मानना है।
___ आप न्याय-विद्याके महान आचार्य थे। आपने अपने ग्रंथोंमें पदार्थका स्वरूप द्रव्यपर्यायमय, नित्य-अनित्यात्मक, कारण-कार्य स्वरूप, भेदाभेद स्वरूप आदि अनेकरूपसे, १. यह कावेरी नदीके तटपर फणिमण्डलके अंतर्गत अत्यंत समृद्धशाली नगर माना गया है।
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