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भिक्षु दृष्टांत मै मेलणौ, फलाणै नै अमुक गांमें मेलणौ। पिण सरीयारी मेलवा री बात न कीधी।
जद हेमजी स्वामी बोल्या-स्वामीनाथ सरीयारी मै साध आयनै मेलवारी बात ही न कीधी ? जद स्वामीजी करड़ा वचनै करी घणा निषेध्या । कह्यौ-गृहस्थ सुणता बात हीज न करणी, साधां रै विच बोलवारौ काम हीज कांइ ? जद हेमजी स्वामी नै करली घणो लागी । मून साझ नै सूय रह्या।
० म्हां जीवता लेसी क ? पछै प्रभाते हेमजी स्वामी तौ दर्शण करनै सरीयारी कांनी नींबली रौ मारग लीधौ अनै स्वामीजी कुशलपुरा कानीं विहार कीधौ। आगे जातां स्वामीजी ने कांयक सकुन पाल हवा जद पाछा फिरया। आप पिण नींबली कांनी पधाऱ्या । हेमजी स्वामी री चाल तौ धीरै नै स्वामीजी री चाल उतावळी सो आय पूगा। हेलौ पाड्यौ-हेमड़ा ! म्हेई आया हां। जद हेमजी स्वामी ऊभा रहिनै बंदना कीधी।
जद स्वामीजी बोल्या-आज तो थां ऊपर हीज आया हो । जद हेमजी स्वामी बोल्या-भलाई पधार्या।
अब स्वामीजी बोल्या-तने साध-पणौ लेऊ-लेऊ करतां नै ललचावतां नै तीन वर्स रै आसरै हुआ है अबै समाचार पका कहि दै।।
जद हेमजी स्वामी बोल्या-स्वामीनाथ ! साधपणी लेवारा भाव खराखरी है।
स्वामीजी बोल्या-म्हां जीवता लेसी कै चल्या पछै लेसी ? आ बात सुणनै घणी करडी लागी। स्वामीनाथ ! इसी बात क्यानै करौ। आप रै संका हुवै तौ नव वर्सी पछै कुशील रा त्याग कराय देवो।
जद स्वामीजी बोल्या-त्याग है थारै। चट त्याग करावता ईज हवा । त्याग करायनै बोल्या–परणीजवा रै वासतै नव वर्ष थे राख्या है के ? हां स्वामीनाथ!
जद स्वामीजी फेर बोल्या--एक वर्स तौ परणीजतां लागै पाछै आठ वर्स रह्या । तिण मै एक वर्स स्त्री पीहर रहै । पाछै रह्या सात वर्स । तिण मै दिन रा त्याग है थारै । पाछै रह्या साढा तीन वर्स । साढा तीन वर्स मै पांच तिथ रा त्याग है। पाछै रह्या दोय वर्स नै च्यार मास रै आसरै रह्या। इम संकोचता-संकोचतां पौहर रौ लेखौ आदि करतां घड़ियां रै लेखै छ मास रौ कुशील आसरै बाकी रह्यो। • वले स्वामीजी बोल्या–परण्यां पछै एक दोय छोहरा-छोहरी हुवै नै स्त्री मर जावै जद सर्व आपदा पोता रै गले पड़े। दुखी हुवै। पछै साधपणौ