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दुष्टांत : १७६-१७९
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जाने दोष लगावै अने प्रायश्चित्त लेवें नहीं त्यांरै लारै क्यूं ही विशेष रहे नहीं ।
१७६. दंड तौ उ गाम देव ईज हैं
धामली मै आय विना भळायां चोमासौ कियौ । तिहां आहार पाणी री कडाइ घणी पड़ी ।
किण हो स्वामीजी नै पूछ्यौ - महाराज ! धामली मै आय्य बिना भळायां चोमांस कियौ त्यां नै कांई दंड देसौ ?
जद स्वामीजी बोल्या - प्रथम दंड तो ऊ गांम देवैईज है । बच्यो खुच्यो वै आसी जद देस्यां । पछै भेळा थया जद त्यां आय ने प्राछित देई सुध कधी ।
१७७. साहमी बोलै जीसी
धनाजी री प्रकृति कडली जाणनै स्वामीजी विचार्यो आ भारमलजी भी कठिन है । साहमी बोलै जीसी है। यूं जाणने छोड़ण रौ उपाय कर न कळा सुं पर छोड़ दीधी ।
१७८. औ पद सांचो के झूठो ?
छै लेश्या हुंती जद वीर मै, हूंता आठूं कर्म । छद्मस्थ चूका तिण समैं, मूरख थापे धर्म । चतुर नर समझौ ज्ञान विचार |
आ गाथा जोड़ी जद भारमलजी स्वामी कह्यौ - 'छद्मस्थ चूका तिण
समै' औ पद परहो फेरी, लोक बैदौ करें जिसो है ।
जद स्वामीजी बोल्या - औ पद साचौ के झठौ ? जद भारमलजी स्वामी कह्यौ है तो साचौ ।
जद स्वामीजी बोल्या - साचो है तो लोकां री कांई गिणत है । न्याय मारग चालतां अटकाव नहीं ।
१७९. बिच बोलवा रौ काम होज कांई ?
सम्बत् अठारै तेपनै स्वामीजी सोजत चोमासौ कीधौ । पछै विचरताविवरता मांढै पधार्या । तिहां सरीयारी सूं गृहस्थपणे मे हेमजी स्वामी दर्शण करवा आया । पौळ रा चौतरा ऊपर तौ स्वामीजी पोढ्या अन हैठ मांचौ बिछायन हेमजी स्वामी सूता | जद साध नै स्वामीजी माहो माहि साध आर्या ने क्षेत्रां मै मेलवा री बातां करै- उण साध नै उन गांम