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दृष्टांत : १६८-१७१
. १६८. कच्चो तेहिज बली दोय साधां रै आपस मै अड़बी लागी । ऊ कहै-तूं लोलपी। अनै ऊ कहै-तुं लोलपी। इम परस्पर विवाद करता स्वामीजी कनै आया तो पिण झोड़ छोड़े नहीं।
जद स्वामीजी बोल्या-दोन जणां विगै रा त्याग करौ, आज्ञा रौ आगार राखौ । पहिला आज्ञा मांगै तेहिज कचो । एक जण च्यार मास रै आसरै विगै न खाधी, पछै आज्ञा मांगी। जद दूजा रे इ विगै रौ आगार होय गयौ।
१६९. आंगुण किणरा सूझया ? नाथजीद्वारा मै छपने रै वर्षे स्वामीजी रै वाय रा कारण सूं १३ मास रै आसरै रहिणौ पड़ यौ। तिहां हेम गोचरी गया दाल चणां री नै मूंगा री भेळी हुई।
स्वामीजी देखनै पूछ्यौ-आ चणा री मूंगा री दाल भेळी कुंण कीधी। जद हेमजी स्वामी बोल्या-मैं भेली आणी।
जद स्वामीजी बोल्या कारण वाळा रै बासते ऊदीर नै मांगनै न्यारी ल्याणी तौ जिहां इ रही, एह भेळी क्यं कीधी। जद हेमजी स्वामी बोल्याअजाण में भेळी हुइ । जद स्वामीजी घणा निषेध्या । जद एकन्त जायगां जाय सूता । उदास थया । पछै स्वामीजी आहार कर आयनै कह्यौ-आंगुण आपरी आतमा रा सूझया कै म्हारा सूझया ?
जद हेमजी स्वामी बोल्या--महाराज ! ओगुण तो म्हारा इ सूझया।
जद स्वामीजी बोल्या-ठीक है । आज पछै सावचेत रही। उठ, जा आहार कर, इम कहीने आहार करायौ।
१७०. कांण राखै ज्यूं कोई नहीं काफरला मै खेतसी स्वामी नै हेमजी स्वामी गौचरी गया । तिहां धोवण विनां चाख्यां भेळो थयो । तिवारै खेतसीजी स्वामी कह्यौ-हेमजी !
आज बिनां चाख्यां धोवण भेळो कीयौ है, माफक न निकळीयौ तौ स्वामीजी 'इसा निषेधता दीसै है, बाकी कांण राखै ज्यू कोइ नहीं। पछै काफरला नां देवरा मै पाणी चाख देख्यौ । चोखो नीकल्यौ । जद मन राजी हुवी।
१७१. कारणीक रो जाबतो करता कारण वाला साध रै वासतै दाल मंगावता तो दोय कानीं मेलता। काइ चिरकी हुवै, काई खारी हुवे, किण ही मै लूण धणी हुदै, किण ही में