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दृष्टांत : १६१-१६३
जद बैणीरामजी स्वामी बोल्या-म्हारा कैलड़ा थी रंगवा रा भाव है।
जद स्वामीजी बोल्या-कैल लेवा जाय जद ऊली कांनी तौ पीळो कचा रंग रौ केलू अनै आगे लाल पका रंग रौ केलू परयो देख नै थारे लेखे पहिला देख्यौ सो ही लेणौ । चोखौ केलू हेरै तौ ध्यान तो सुरंग रंग रौ इज ठहरयो। इम कहिन समझाया पछै समझ गया।
१६१. दुरंगा क्यूं रंगौ ? कोई कहै-पात्रां नै दुरंगा क्यूं रंगौ ?
जद स्वामीजी बोल्या-कथंवां री निगै चौखी तरै पड़े । एक रंग सं दूजे रंग ऊपर आवै जद दीसणौ सोहरौ । कोरौ हींगलू बोझल पिण हुवै। काळी फोरो हुवै । बासी उतारणी सोहरो । इत्यादि अनेक कारण सूजूजूवा रंग दैवै तो पिण सूत्र मै वरज्या नहीं।
१६२. खूचा काढता बालपणे बैणीरामजी स्वामी चणां काढ़ता । स्वामीजी आप बिनां जोयां बिनां पूंज्या पग सरकाया।
__ एक दिन बैणीरामजी स्वामी ती अळगा बैठा। देखनै स्वामी गुप्तपणे पूंजनै पग सरकायो नै साधां ने कह्यौ-ऊ बेणो अळगो बैठौ देखै है।
इतले बैणीरामजी स्वामी बोल्या-ऊ स्वामीजी बिनां जोयां पग सरकायो।
स्वामीजी ने और साध हसवा लागा। पछै साधां कह्यौ-पूंज नै पग सरकायो। जद लचकाणां पड़या अनै पगां आय लागा।
१६३. इसा वनीत बैणीरांमजो पीपार मै बैणीरांमजी स्वामी दूजी हाटे बैठा। स्वामीजी हेली पाड्यौ–ओ बैणीराम ! ओ बैणीराम ! इम दोय-तीन हेला पाड्या पिण पाछा बोल्या नहीं।
__ जद गुमानजी लुणावत ने कह्यो-बैणो छूटतो दीसे है । जद गुमानजी बैणीरांमजी स्वामी नै जाय कह्यौ-थांने हेला पाडया बोल्या नहीं तिण सूं स्वामीजी आ बात कही-'बैणी छूटती दी है।
इम सुण नै बैणीरामजी स्वामी डरीया आयनै पगां लागा।
जद स्वामीजी बोल्या-रे मूरख ! हेलो पाइयां पिण पाछौ बोले नहीं? बैणीरांमजी स्वामी नरमाई करने बोल्या महाराज मैं सुणीयौ नहीं।