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शिवजी रो चोढाळियो उदयचंदजी रो चोढाळियो हरख चोढाळियो हस्तु कस्तु चोढाळियो
कर्मचंदजी री ढाळ "भिक्षु दृष्टांत' राजस्थानी भाषा का उत्कृष्ट ग्रन्थ है । डेढ़ शताब्दी पूर्व संस्मरण साहित्य की परम्परा बहुत क्षीण रही है। उस अवधि में लिखा हुभा यह संस्मरण ग्रंथ भारतीय साहित्य में ही नहीं, अपितु विश्व साहित्य में भी बेजोड़ है। श्री मज्जयाचार्य ने प्रस्तुत ग्रन्थ का संकलन कर भाषा, दर्शन और आचारवाद की दृष्टि से एक अनुपम अवदान दिया है।
राजस्थानी भाषा सबके लिए सहजगम्य नहीं है। इसलिए उसका राष्ट्र भाषा हिन्दी में अनुवाद किया गया है। विश्व साहित्य में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है, इस दृष्टि से इसका अंग्रेजी आदि विविध भाषाओं में अनुवाद होना जरूरी है। हिन्दुस्तान की अन्य भाषाओं में भी इसके अनुवाद की उपेक्षा नहीं की जा सकती। संवाद और संस्मरण का एक जीनित ग्रन्थ जनता के हाथों में पहुंचकर अभिनव उल्लास और रसात्मकता की सृष्टि कर सकता है । ___आचार्य भिक्षु का जीवन जितना प्रसन्न और निर्मल है उतनी ही प्रसन्न और निर्मल है उनकी प्रतिपादन शैली । वे अपनी बात को इतनी सहजता से कहते हैं कि वक्तव्य शब्दों के जाल में नहीं उलझता, सीधा श्रोता के हृदय तक पहुंच जाता है, बौद्धिकता से परे अन्तर्दृष्टि की अनुभूति होती है। प्रस्तुत संस्करण के सम्पादन में मुनि मधुकरजी ने अत्यधिक श्रम किया है। द्वितीय संस्करण में तीन परिशिष्ट थे। इसमें पांच परिशिष्ट हैं -
१. हेम संस्करण २. श्रावक संस्मरण ३. फुटकर संस्मरण ४. शब्दानुक्रम ५. विशेष शब्दकोश
संस्मरण साहित्य के संकलन की दृष्टि से तथा स्वामीजी और जयाचार्य की परिपाश्विक भूमिका के कारण उनकी प्रासंगिकता अपने आप सिद्ध है। यह संस्मरण साहित्य के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ होगा। जनता इसे पढ़कर साहित्य के रसास्वाद में आह्लाद का अनुभव करेगी। गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी ने तेरापन्थ धर्मसंघ को साहित्य के शिखर पर आरोहण की क्षमता दी है। प्राचीन ग्रन्थों का सम्पादन और नए ग्रन्थों का निर्माण-दोनों में अपूर्व गति हुई है। उसी गति का एक चरण विन्यास है प्रस्तुत ग्रन्थ । महरोली, दिल्ली
-आचार्य महाप्रज २२.५.९४