________________
भिक्खु दृष्टांत न मार्यां तूं गोता खासी। इम ज्ञान सूं समझाय नै हिंसा छोड़ावै ते मोख रौ मारग है । पिण साधू बकरा नौ जीवणौ बांछै नहीं।
जिम एक साहकार रै दोय बेटा। एक तौ करड़ी जागां रौ ऋण माथ करै अनै दूजी करड़ी जागां रौ ऋण ऊतारै । पिता किणनै वरजै ? ऋण माथै कर तिण नै बरज पिण ऋण उतारै तिण नें न बरजै। ज्यू साधू तौ पिता समान है अनै रजपूत नै बकरा दोनू पुत्र समान है। यां दोयां मै कर्म ऋण माथै कुंण करै ? नै कर्म ऋण उतारै कुंण? रजपूत तो कर्म रूप ऋण माथै करै है अनै बकरा आगला बांध्या कर्मरूप ऋण भोगवै/उतारै है। साधू रजपूत नै वरजतं कर्मरूप ऋण माथै मत कर। ए कर्म बांध्यां घणां गोता खासी। इम रजपूत नै समझायनै हिंसा छोड़ावै ।
१२९. उपकार संसार नौ क मोक्ष नौ वलि संसार नां उपकार ऊपरै अनै मोक्ष नां उपकार ऊपर स्वामीजी दृष्टांत दीयौ-किण ही नै सर्प खाधौ । गारडू झाडौ देई बचायौ। जद ऊ पगां लाग बोल्यौ, इतरा दिन तो जीतब माइतां रौ दीयौ अनै अबै आज सूं जीतब आपरौ दीयौ। माता पिता बोल्या-थे म्हांनै पुत्र दीयो। बहिनां बोली-थे म्हांनै भाई दीयौ। स्त्री राजी हुई-चूड़ो-चूनड़ी अमर रहसी सो आपरौ परताप है । सगा सम्बन्धी राजी हुवा-आछौ काम कीधौ लाख रुपीया देवै ते बिचै ए उपकार मोटो, पिण ए उपकार संसार नौ । हिवे मोक्ष नौ उपकार कहै छै-किणहि में सर्प खाधौ। उजाड़ में तिहां साधु आया। जब ते कहै मोनै सर्प खाधो झाडौ देवौ।
जद साधु कहै-म्हांनै झाड़ो आवै तौ है पिण देणौ न कल्पै । जद ऊ बोल्यो-मोनें ओखध बताबौ।
साधू बोल्या-ओषध जाणां छां पिण बतावणी नहीं । जद क बोल्यौयूंही मूंहढौ बांध्यां फिरौ हो क कांई थां मै करामात पिण है। - जद साधु बोल्या-म्हांमै करामात इसी है जदि म्हारो कह्यौ मानै किण हि भव मै फेर सर्प खावै नहीं।
जद ऊ बोल्यो-जिकाइ बतावो ।
जद साधु बोल्या सागारी संथारौ करदै-इण उपसर्ग थी बच्यो जद तौ बात न्यारी नहीं तो च्यारूंइ आहार नां त्याग। इम सागारी संथारी कराय नवकार सिखायौ । च्यारू शरणां दीधा। परिणाम चोखा रखाया। आउखौ पूरी कर देवता हुवौ, मोक्ष गामी हुवौ। औ उपकार मोक्ष नौ ।
१३०. साधु किण ने सरावै ? वलि संसार मां तथा मोक्ष नां मारग ऊपर स्वामीजी दृष्टांत दीयो