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भिक्षु दृष्टांत १०८. दोय घड़ी तो सांस रोक हो रहां टोळांवाळां मांही थी नीकळीया जद रुघनाथजी कह्यौ-भीखणजी! अबारूपांचमौ आरौ है, दोय घड़ी चोखौ साधपणौ पाळे तो केवळ ज्ञान पांमै । __जद स्वामीजी बोल्या-यं केवल ज्ञान उपजै तो दोय घड़ी तौ नाक भींचनै ई बैठा रहां। वलि प्रभव स्वामी आदि पंचमां आरा मैं हुंता त्यां चोखौ साधपणौ न पाळ्यौ कांई ?
१०९. म्हारी मा घणी रोई
रुघनाथजी रा टोळा माही थी नीकळतां रुघनाथजी आंख्यां मै आंसू काढवा लागा। जद स्वामीजी विचारचौ-घर छोड़तां यां विचै तो म्हारी मा घणी रोई हुंती । इम विचार नैं छोड़ दीधा ।
११०. ढंढण र अंतराय
गुणसठे रा साल चवद साधां तथा चवदै आर्यां सूं देवगढ़ में भीखणजी स्वामी विराज्या हुंता, तिहां तीन भेषधारी आय बोल्याभीखणजी ! म्हे तीन जणां त्यांने इ पूरी आहार नहीं मिल्यौ, तो थां. इतरा ठाणां नै आहार किण रीते मिले।
जद स्वामीजी बोल्या-द्वारका मै हजारां साधां नै आहार पाणी मिलती थौ अनै ढंढण रै अंतराय सो एकला ने ई कठिण ।
१११. तमाखू चोखो तो है नहीं ? घर मै छतां रजपूत ने साथै बोलावौ लेइ किण ही गाम जातां रजपूत बोल्यौ-तमाखू बिना आघो हालीजै नहीं।
जद स्वामीजी बोल्या-ठाकरां आगै चालौ दिन थोड़ी है। रजपूत बोल्यौ-तमाखू बिनां अबखाई।
जद स्वामीजी पाछै रही आरणीयौ छाणौ नान्हों बांटी पुड़ी बांधने कह्यौ-ठाकरां तमाखू चोखी तो है नही इसड़ी है।
जद तिण रजपूत चिबठी भरनै सूंघी अनै बोल्यौ-ठीक ईज है।
जद स्वामीजी पुड़ी उणने सूंपी। इसी चतुराइ करनै कुसलै खेमै ठिकाणे आया।