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भिक्षु दृष्टांत
५४. नगजी सामी रो तेज
करेड़े स्वामीजी पधाऱ्या । लोक कहै-नगजी सामी रो तेज घणौ ।
स्वामीजी पूछयौ-कांई तेज ? जद लोक बौल्या-नगजी गोचरी पधार्यां कुती घणी भुसै । घणौंई कह्यौ-हे कुती ! साधां नै मत भुस, मत भुस पिण कह्यौ माने नहीं । जद टांग पकड़ने वणण-वणण फेरनै फेंक दीधी। कुती पाधरी होय गइ । जठा पछै फेर भुसी नहीं।
जद स्वामीजी बोल्या-कुती पड़ी जठै जागा पूंजी के नहीं ? जद ते गृहस्थ बोल्या-थे पूंजौ जायन । निकमा चणा काढौ । इसा मूर्ख गृहस्थ ।
५५. संका है तौ चरचा करां पाली मैं मयारांमजी गोचरी मैं आहार मंगायौ तिणसं आठ रोटी बधती ल्यायो । स्वामीजी गिणी नै कह्यौ–आहार मंगाया उपरंत ल्याया।
जब मयारांमजी बोल्यौ-अठै मेल दौ अठै। जद स्वामीजी आठ रोटी काढ दीधी । मयारांमजी साधां नैं धामी पिण कोई लै नहीं।
जद बोल्यौ-परठ देवारा भाव है।
स्वामीजी बोल्या–परठ नै दूजे दिन विगै टालज्यो। जद क्रोध करने ऊधौ बौलवा लागौ । कहै-हूं तो इसा आचार्य राखू नहीं । अकबक बोल्यौ । कहै-नव पदार्थ मैं पांच जीव च्यार अजीव री श्रद्धाइ झूठी । एक जीव आठ अजीव है। जद स्वामीजी खिम्याकर विस्वासी आहार अवेर नै बोल्या-आ थारै संका है तो चरचा करांला। इम कहि उण बेलाईज तावड़े मै विहार कीधौ।
उतवण मैं सूत्र उत्तराधेन थी संका मेट दीधी। प्रायश्चित्त दीधौ । पर्छ वैणीरांमजी स्वामी नै सूप दीधौ । कितरायक दिनां मैं छूट गयौ।
५६. सोख किणने ? __ स्वामीजी दिशा जातां एक भेषधारी साथै थयौ। ते नीलां ऊपर चालतौ देखी स्वामीजी बोल्या-छतै चोखै मारग नीलां ऊपर क्यूं हालौ ? जद ते बोल्यौ-म्हारौ नाम लीयौ है तौ हूं गाम मैं जाय कहिसू भीखणजी नीला ऊपर दिशां गया।
५७. केहणो कोनी रीयां पीपार बीचै एक भेषधारी मिल्यौ। स्वामीजी ने एकंत ले गयौ । थोड़ी वेला सूं पाछा पधार्या । जद हेम पूछ-स्वामीनाथ ! आपनें कांइ बात पूछी?