________________
दृष्टांत : १०-११ आदर्यो । छव महीनां पछै बोल्यौ-एक स्त्री म्हे आज छोड़ी। जद किण ही कह्यो-थे शील आदर्या नै तो घणा महीनां थया है नी ? जद ते बोल्यो –ढीला पङ्या हा सो सांकड़ा बता-हता हुसां ।
१०. साध-असाध पादु रा उपाश्रय मै भीखणजी स्वामी नै हेमजी स्वामी गोचरी उठता था। इतरै सामीदासजी रा दोय साध मेला वस्त्र, खांधे पोथ्यां रा जोड़ा, विहार करता 'भीखणजी कठै ?', 'भीखणजी कठे ?” इम करता आया । स्वामीजी कह्यौ-म्हारौ नाम भीखण । तब उवे बोल्या-थान देखवारी मन मै थी।
जद स्वामीजी कह्यौ-देखो।
जद उवे बोल्या-थे सर्व बात आछी करी पिण एक बात आछी न करी।
स्वामीजी कह्यौ–कांइ ? जद त्यां कह्यौ-बावीस टोळां रा म्हे साध त्यांनै थे असाध कहो छोते। जद स्वामीजी कह्यौ-थे किणरा साध ? जद त्यां कह्यौ-म्है सामीदासजी रा साध ।
जद स्वामीजी कह्यौ-थांरा टोळा मै इसो लिखत है-इकीस टोळां रो थांमें आवै तो दिख्या देइ मांहे लेणौं । इसो लिखत है सो थें जांणौ हौ ?
जद त्यां कह्यौ-हां जांणा छां।
जद स्वामीजी कह्यौ-इक्कीस टोळा तो थे इ उथाप्या। गृहस्थ नै इ दीख्या देइ लेवौ अन त्यांने इ दीख्या देइ ने मांहै लेवो । इण लेखै त्यां इक्कीस टोळा नै गृहस्थ बरोबर गिण्या । सो इक्कीस टोळा तौ थे इ उथाप्या। एक थारौ टोळो रह्यौ सौ भगवान कह्यौ-बेलौ प्रायश्चित्त रौ आयां तेलौ देव तौ देणवाळा ने तेलो आवै। जो उणांने साध सरधौ हो नै फेर उणांने नवौ साधपणौ देवौ, सो थारे लेखे थाने साधपणौ आवै। इण लेखै थारो टोळी पिण उथप गयो।
ते सुण नै बोल्या-भीखणजी थांरी बुध जबरी। इम कहि जावा लागा।
स्वामीजी कह्यौ-अठ रहौ तौ आज चरचा करां।।
जद ते बोल्या-म्हारै तौ रहिवा री थिरता नहिं । इम कहि चालता रह्या।
११. सरधा अने परूपणा रो भेद एक गाम मै स्वामीजी ऊतऱ्या । अमरसिंहजी रा दो साध-ईसरदास