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________________ श्रावक दृष्टांत रात के व्याख्यान में कहने लगे। परिषद् खूब आई । कुछ नागोरी आदि काफी लोगों ने व्याख्यान समाप्त होने के बाद स्वामीजी को सौगंध दिलाते हुए कहा-कल विहार किया तो २४ तीर्थंकरों की सौगंध है । सील भांग त्यांरा टोला मो, तिण ने दिख्या दै ताम रे । पिण छोटा रे पगे पाड़े नहीं, इसड़ो कर अज्ञानी काम रे ॥ __ तुम्हें जोय जो अन्धारो भेष में यह ढाल तुमने कही--- "तो किसका शील भंग हुआ और किसको बड़ा रखा" इस बात का कल तार निकालना/निर्णय करना है । इस प्रकार मुंह से अक-बक बोलने लगे। पर स्वामीजी ने मौन रखी। तब घणराज नागोरी बोला-देवता की प्रतिमा बैठे वैसे बैठे हो, वापस बोलते क्यों नहीं ? फिर भी स्वामीजी मौन रहे, तब हैरान होकर चले गए। कुसालजी (बागोर के) उस समय संघ में थे, बोले- इस क्षेत्र में स्वामीजी के आने का मतलब ही क्या है ? तब स्वामीजी बोले -- यह तो कच्चा है। स्वामीजी को घणराज ने उलटी-सीधी बातें कही ! यह बात राणाजी के प्रधान शिवदासजी गांधी, जो फौज में थे, ने सुनी। तो घणराज को उपालंभ भेजा और कहलाया-तूं घोटा लेकर भीखणजी के पास जाकर उलटा-सीधा बोला, इतना सूरवीर है तो फौज के सामने जाकर लड़ाई कर न । साधुओं से कलह क्यों करता है। भैरूंदास चंडाल्या बोला- ये आपसे कलह करते हैं, पर थोड़े दिनों में ये सब आपके ही बनेंगे ऐसा लगता है । इस प्रसंग पर एक उदाहरण सुनो-- दिल्ली में बादशाह राज्य करते थे। उनके सामने न्याय, निगरानी और सब कामों का कर्ता, अग्रवाल जाति का राव रुघनाथ, जिसका हुक्म देश में प्रसिद्ध था । उसी दिल्ली में एक गरीब अग्रवाल अपने पुत्र को अच्छे कपड़ों आदि से सजा कर गोद में लेकर बाजार में आया। तब किसी ने उपहास करते हुए कहा - पुत्र को ऐसा सजाया है, क्या राव रुघनाथ की लड़की से सम्बन्ध करने का विचार है ? तब वह बोला-इस बात का उपहास/मजाक क्या करते हो, किसी के पास धन अधिक हो, किसी के पास थोड़ा हो फिर भी जाति आदि शुद्ध हो तो सम्बन्ध में आपत्ति जैसी बात नहीं। ऐसा कहकर वह गरीब अग्रवाल राव रुघनाथ की कचहरी में पहुंच गया। सैकड़ों लोग बैठे थे। वहां आकर बोला-राव रुघनाथ ! "तुम्हारी लड़की से हमारे लड़के का संबंध करो।" तब राव रुघनाथ की कुदृष्टि देखकर उनके सामने काम करने वालों ने गालियां बोलते हुए उसका अपमान कर बाहर निकाल दिया। वह वापस बाजार में आया। लोगों ने पूछा-संबंध कर दिया? तब वह बोला-थुक्कम-थुक्का तो हुआ है । दूसरे दिन उसी तरह लड़के को सजाकर फिर कचहरी में जाकर बोला"तुम्हारी लड़की, हमारा लड़का संबंध करो" तब धक्का देकर बाहर निकलवा दिया।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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