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भिक्खु दृष्टांत
जद भिक्खु कह्यौ-चोमासै मै पिण तूं कहसी जद परहा जासां।
जद बाई कह्यौ-मोनें थां सरीखा कहि गया-चौमासौ लागां पछै जाय नहीं। तिणसूं आज्ञा नहीं।
पछै स्वामीजी आप गौचरी ऊठ्या । उदैपुरिया बाजार मै एक मैड़ी जाची । आप बैठा नै साधां नै मेल उपगरण मंगाय लिया। दिने ऊंचा रहै । रात्रि हेठे दुकान मै वखाण देवै । परखदा घणी आवै। लोक घणा समज्या । ...... सिज्यातर नै घणौं ई कह्यौ-थे जागा क्यूं दीधी ? औ अवनीत निन्हव छै। __ जब ते कहै-काती पून्यू तांइं ना कहूं नहीं।
पछै थोड़ा दिनां मै मेह घणौ आयां पहिली उतरीया तिण हाट रौ पाट भागौ । सैंकड़ा मण बोझ पड़यौ। ए बात स्वामीजी सुणने कह्यौ-म्हांनै हाट छुड़ाई त्यां ऊपर छद्मस्थ रा सभाव थी लैहर आवा रौ ठिकांणौ, पिण म्हांसू तौ उपगार ईज कीधौ, ऐसा खिम्यावांन ।
३. चोखो-खोटो पीपाड़ मै भीखनजी सांमी नै रुघनाथजी रौ साध जीवणजी कहैसाधु रौ आहार अव्रत प्रमाद मै है।
जद स्वामीजी कहै-भगवान री आज्ञा छै सो काम चोखौ। पिण जीवणजी मान्यौ नहीं।
फेर स्वामीजी पूछ्यौ-साधु आहार करै सो काम चोखौ के खोटौ ?
जीवणजी बोल्यौ-साधु आहार करै ते खोटौ काम, त्यागै ते चोखौ काम।
दिशां आदि जातां मिलै । जद स्वामीजी पूछ-जीवणजी ! खोटौ काम कीधौ के करणौ है ? इम बार-बार पूछतां लातरियौ। कहै-भीखनजी ! साधु आहार कर सौ काम चोखोइ है ।
४. निकमो आरंभ कंटाळिया मै भीखणजी स्वामी रौ मित्र गुलोजी गाधिया। तिणनै स्वामीजी पूछ्यौ--गुला ! कांइ खेती कीधी ?
हां स्वामीनाथ ! कीधी ? स्वामीजी पूछ्यौ-उपत-खपत कीकर है ?
जद गुलजी बोल्यौ-स्वामीनाथ ! रुपिया दश लागा, कांयक हळ रै __ भाड़ा.रा, कांयक निताण रा, कांयक बीज रा, सर्व दस रुपिया लागा। १. भीखणजी स्वामी का बोलचाल में प्रयुक्त नाम । २. निदाण (क्वचित्)।