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दृष्टांत : १६
२६९ एक दृष्टंत सुणौ-एक साहूकार री हवेली दोय साध गौचरी गया । ऊपर पगतिया री नाल चढ़ता अंधारौ देखनै पांछा फिर्या । ऊपर सूं हेलो पाड़े-"ऊंचा पधारौ-"ऊंचा पधारौ' । साध तौ पाछा फिर गया। थोड़ी बेला थी दोय साध फेर आया। ऊंचा जाय आहार पांणी बहिरयौ। ग्रहस्थ कह्यौ-पहिला दोय साध आया, सो तो पाछा फिर गया, अनै आप ऊंचा पधारया । जद उवे साध बोल्या-"उवे पाखंडी था, सो पाखंड कर गया"इम कहि उवे पिण गया। थोड़ी बेला सूं दोय साध फेर आया तिवारे ग्रहस्थ बोल्या-दोय साध पहिला आया सो तो नाळ सू पाछा फिर गया, पछै दोय साध आय बेहरनै उणां नै पाखंडी कहि गया, अनै अब आप आया हो जद उवे साध बोल्या–पहिला आया, सो तो असल साध अंधारौ देखनै पाछा गया। पछै दोय साध आया ते हीणआचारी, दोय मूर्ख-पोते तो पालै नहीं, अनै पालै जिणसू द्वेष-निंद्या करै । अनै म्हां सूं तो पळे कोई नहीं । भेख रे ओटै रोटी मांग खावां । पहिला आया जिके धन्य है। इम कहि ते पिण गया।
श्री पूजजी बोल्या-पहिला ज्यूं तौ थे, दूजा ज्यूं ऐ मठधारी थानक बांध बैठा ते, अन तीजा ज्यूं म्हे म्हां सूं तो पळे कोई नहीं सो थे यांसू चरचा करौ, पिण ऐ चरचा लायक नहीं। ए बात सुण नै-साध तीनूं ठिकाण आय नै भारमलजी स्वामी नै सर्व समाचार कह्या ।
० अठा स्यूं विहार कर जाइज्यो नहीं तौ"" पछै भारमलजी स्वामी जैपुर आय चोमासौ कीधौ अनै हेमराजजी स्वामी माधोपुर कांनी विहार कीधौ। २२ कोस रै आसरे गया आगे नदी बहिती देखी, जद मन मै विचारचौ--कृष्णगढ़ मै भेषधार्थी अन्हाख कदाग्रह कीधौ तौ चोमासौ कृष्णगढ़ हुवै तौ ठीक, इम चितव विहार पाछौ करने कृष्णगढ़ पधारया । दोय जागां आज्ञा मांग एक हाट में ऊतरया । पछै भेषधारयां उणनै सीखाय नै जागां छोड़ाय दीधी। जद दूजी हाट जाची । जद उठे प्रथीकाय आंण न्हाखी। पछै उमेदमल श्रावगी री हाटे आज्ञा मांगी ऊतरया। जद भेषधारी आय बोल्यौ-थे दगादार तेरापंथी हो, म्हारां पिंडत-पिंडत तौ विहार कर गया, अनै थे छल करने आया, के तौ अठा सं विहार कर जाइजौ, नहीं तौ पातरां बाजार मै ठोकरां रै मूंहढे बूहा फिरैला।
हेमजी स्वामी सुणनै मून राखी । चोमासौ लागौ । बखाण मै लोक मोकळा आवै, पिण संवछरी नौ पोसी एक हुऔ नहीं । पछै लोक समझ्या । सो दीवाली रा पांच पोसा हुआ । जैपुर मै ए समाचार सुणनै भेषधारी तौ बेराजी हुआ नै भारमलजी स्वामी राजी हुआ। सं० १८६९ रौ चोमासौ कृष्णगढ़ कीधौ तठां तूं क्षेत्र नी नींव लागी।