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दुष्टांत : १३-१५
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जद ऊ बोल्यौ—म्है कद लोपाया है, गृहस्थ लोप्यौ है । इम सदोष आधाकर्मी भोगवै अनै कपट करें एहवा नै ओलख ते उत्तम जीव जांणवा । १३. इसौ प्रश्न तौ कबहु न सुण्यौ
स्वामीजी रा श्रावकां दिल्ली कांनी का भेषधारघां नै चरचा पूछी - नव पदार्थ मैं जीव केता नै अजीव केता ?
जद ऊ भेषधारी बोल्यौ - पूज बलाकीदासजी देख्या, पूज हरीदासजी देख्या इत्यादिक अनेक नांम लीया, बड़े बड़े मोटे पुरुष देख्या पिण 'नव पदार्थ जीव केता अन अजीव केता' इसी अडबंग प्रश्न तो कबहु न सुण्यो । कही तो जीव का १४ भेद हूं कहूं, कहो तो अजीव का १४ भेद हूं कहूं, कहो तो पुन का ९ भेद हूं कहूं, कहो तो पाप रा १८ भेद हूं कहूं जाव कहो तो मोख रा ४ भेद कहूं, पिण नव पदार्थ में जीव केता नै अजीव केता ? इसौ प्रश्न तौ कबहु न सुप्यौ । इम भणणहार बाजै पिण नव पदार्थ री ओळखणा नहीं ।
१४. नव तत्त्व री ओळखणा बिनां समकत किम आवं ?
दिल्ली कांनी का भेषधाऱ्यां ने स्वामीजी के श्रावकां प्रश्न पूछ्यौ - नवपदार्थ में जीव केता अन अजीव केता ?
जद ऊ भेषधारी बोल्यो- पांच जीव नें चार अजीव कहूं तो श्रद्धा भीखणजी री । चार जीव ने पांच अजीव कहूं तो श्रद्धा रुघनाथजी री । एक जीव ने आठ अजीव कहूं तो श्रद्धा बगतरामजी री। एक जीव एक अजीव सात जीव अजीव री प्रज्याय कहूं तो श्रद्धा अमरसींगजी री । आठ जीवन एक अजीव कहूं तो श्रद्धा खींवसीजी री । सात नय चार निपेक्षा लगा कर देव गुरांना प्रसाद कर सूत्र नी युक्ति लगाय कर कहूं एक जीव एक अजीव सात जीव अजीव री अवस्था । इम नव तत्व ओळखणा नहीं, मन इच्छा प्रमाण परूप त्यांने समकित किम आवै ।
१५. इसा मानवी थोड़ा
ती खरतरांना श्री पूज जिनचंद सूरी आया । उपाश्रा मै घणा लोक बैठा बखाण बाचतां आश्रव रौ कथन आयौ जद बोल्या - आश्रव अजीव ।
जद चैनजी श्रीमाल स्वामीजी रौ श्रावक बोल्यौ - श्रीजी महाराज ! आश्रव जीव है ।
जद श्रीपूजजी बोल्या - आश्रव अजीव है ।