________________
दृष्टांत : ३३-३४
२५९ अनंता मनुष्य पिण नहीं, सो अनंता साध वर्तमान काले किवाड़ किम जड़े इण बात रौ "मिच्छामि दुक्कडं" दो।
जद उ बोल्यो-"मिच्छामि दुक्कडं" थाने आवै, थे द्यौ।
जद हेमजी स्वामी बोल्या-मिच्छामि दुक्कडं आवै तौ थाने अनै म्हारौ नाम लेवौ अपूठी चौर कोटवाल नै दंडै ।
जद हीरालाल अकबक बोल चालतो रह्यो । थानक मै आयनै बोल्योहूं तेरापंथियां तूं चरचा करिवा बाजार मै जाऊं। जद मांडलगढ वाली सदाराम जी महतो बोल्यौ थे चरचा करिवा मत जाऔ। वार-वार कह्यो, पिण मानै नहीं । बली सदारामजी बोल्यां--उणां तूं चरचा करवा जावो तो पहिला म्हारा पूछ्या रौ तौ जाब देद्यौ-धर्म भगवान री आज्ञा मांहै के आज्ञा बारै ?
जद हीरालाल बोल्यौ-आज्ञा माहै।
जद सदारांमजी कह्यौ-पगे सेंठा रहीजो इम कही रोटी जीमवा घरे गयो । लारे हीरालाल आयनै बोल्यौ-मंहताजी धर्म तो आज्ञा माहै पिण छ नै बारे पिण छै। ___ जद सदारामजी बोल्या-तेरापंथ्यां सं चरचा इसी करता तो किसाय क दीसता ? इम कही कष्ट कीधौ।
३३. ऊंडी दृष्टि भारमलजी स्वामी न्हांनी, न्हांनी डाबरीयां नै बोलावै सीखावै चरचा पूछ, विशेष बात करै, गुरु करावै ।
जद किण हि कह्यौ महाराज ! छोटी डावरीया नै विशेष बतळावी, सो इण मै कोई गुण ?
__ जद भारमलजी स्वामी बोल्या-ऐ डावरीयां मौटी हुबां श्राविका हुंती दीसै सासरा पीहर मै घणां ने समझावै । ऐ समज्यां घणी बेटा बेटारी बहुआ बेटयां, दोहित्यां, घणां समझवारौ ठिकाणी है तिण कारण यांनै विशेष बतळावां । मोटा पुरुषां री इसी ऊंडी दृष्टि । इसी उपगार ऊपर नीत ।
३४. संका हुवै तौ चरचा पूछल्यो पीपाड़ मै वेणीरांमजी स्वामी नै देखनै चौथमलजी बोहरी बोल्योभीखणजी ! अबे थे पिण बालकां नै मूंडवा लागा।
स्वामी बोल्या-संका हुवै तौ चरचा पूछल्यो। जद तिण आय पूछ्यौ-साधां मोक्ष किसे गुणठांण जाय ?
जद वेणीरांमजी स्वामी बोल्या-गुणठांण मोक्ष न जाय गुणठांणों छूटां मोक्ष जाय । जद सुणनै राजी हुवो।