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दृष्टांत : २०
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नहीं, काटीयो कट नहीं, बाढ़ीयो बढ़े नहीं, इम जीव न मरै जब हिंसा किम लागे ?
जद हेमजी स्वामी बोल्या - भगवती मै कह्यो - " आधाकर्मी भोगव्यां छकाय रौ घाती कहीजै अने निर्दोष भोगव्यां छ काय नौ दयावान कीजै ।"
जो जीव मार्यो न मरै, तो आधाकर्मी भोगव्यां छ काय नौ घाती क्यूं कौ ? अठे पण रूपविजै कष्ट थयौ ।
वली हेमजी स्वामी बोल्या- जो उघाड़े मुख बोल्यां वायुकाय रा जीव मूवान सरधी थे, तो मूंहढा आडी मुखपती क्यूं राखौ ?
जद रूपविजै बोल्यो - अम्है तौ वचन शुद्धि ने अर्थे मुहपती राखां छां । जद हेमजी स्वामी बोल्या - तौ वचन शुद्धि अधूरी क्यूं ? किणहिक वेलां तौ मुहपत्ती मुंहडा आडी रहे नै किणहिक वेला पूरी जैणा रहे नहीं, उघाड़े मुख बोलो, सो वचन शुद्धि पिण पूरी नहीं, इहां पिण रूपविजै कष्ट थयो । व हेमजी स्वामी बोल्या - गोतम पूछ्यौ “इन्द्र भाषा बोलै ते सावद्य कै निरवद्य ?
जद भगवान बोल्या - " इन्द्र उघाडे. मुख बोलं ते तो सावद्य अनै मुख हाथ तथा वस्त्र देई बोलै ते निरवद्य ।" भगवती ( शतक १६ । सू० ३८, ३९) मैं आ बात कही छै कँ नहीं ?
जद रूपविजै बोल्यो -- कही तो छे । इहां पिण रूपविजै घणौ कष्ट
थयो ।
वली हेमजी स्वामी प्रश्न पूछ्यौ --नव पदार्थ में सावद्य केता ? निरवद्य केता ? सावद्य निरवद्य नहीं केता ? नव पदार्थ मै जीव केता ? अजीव केता ? नव तत्त्व किण ने कहीजे नै नव पदार्थ किणनै कहीजै ?
जद रूपविजै बोल्यौ -- एहनो स्यूं धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय एतौ पुद्गल छै ।
जद हेमजी स्वामी बोल्याद्यो मिच्छामि दुक्कडं । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय पुद्गल कठै है ।
पुद्गल तो रूपी अन ए अरूपी है ।
वली रूपविजै बोल्यौ -काळ जीव अजीव दोनूं छै ।
जद हेमजी स्वामी बोल्या - दूजी मिच्छामि दुक्कडं फेर दो ।
का जीव अजीव दोनूं कठै है ? जीव अजीव ऊपर वर्त्ते है, पिण काल तो अजीव छै ।
जद रूपविजै क्रोध मै आयौ । हाथ धूजवा लाग गया ।
जद हेमजी स्वामी बोल्या - थांरा हाथ क्यूं धूजै ? हाथ तौ च्यार प्रकारे धूजै । कै तौ कंपण वाय सूं १, के क्रोध रे वश २, के चरचा मै हाऱ्यां हाथ धू ३, के मिथुन रे वश ४ | जद विशेष रोस मै आयौ । लोक भेळा घणा