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दृष्टांत : १५-१८
२४९ १५. पुण्यां तो कतणीया मै मोकळी दोसे है हेमजी स्वामी गोचरी पधार्या । एक बाई किंवाड़ खोल दीयो । तिणनै पूछ्यौ-थे किंवाड़ क्यूं खोल्यौ ? ____जद ते बाई बोली-हूं तौ कातती थी, सो पुण्यां रै वासतै खोल्यौ आपरै वासतै खोल्यौ नहीं।
जद हेमजी स्वामी तिण रौ कातण रौ कतणीयौ देख्यौ। मांहै मोकळी पुण्यां देखनै कह्यौ बाई तूं कहिती थी पुण्यां ल्यावा खोल्यो सो पुण्यां तो कतणीया मै मोकळी दीस है, इम कह्यां दबकीज गई।
१६. कांई सूंस करू ? सीहवा में माना खेतावत ने कह्यौ --रात्री रा खावा रौ सूस करौ।
जद मानजी बोल्यौ-रात्रि रौ सूंस कीया चन्द्रमा वेराजी हुवै । दिन रा सूंस कीयां सूर्य बेराजी हुवै। अबै कांई सूस करू ? जद हेमजी स्वामी बोल्या-अमावस नी रात्रि नौ सूंस करौ। जद बोल्यौ-ठीक है, कराय देवो।
१७. ओ मनोरथ तौ फळतौ दोस नहीं चेलावास मै हीरजी जती ऊंधी-ऊंधी चरचा करै। जद हेमजी स्वामी बोल्या-हीरजी थांने राजाजी हुकम देवै "थारौ मन हुवै ज्यूं करो" तौ थे कांई करो? __जद हीरजी बोल्या-ढूंढिया तो एक न राखू, सर्व नै म्हारा हाथ सूं मारू ।
जद हेमजी स्वामी बोल्या-म्हांसं तौ टाळो कीजे, आंपांरै तौ हेत है। जद हीरजी बोल्यौ-सघळा पहिला तोनै मारू ।
जद हेमजी स्वामी बोल्यो-ओ तो थांरो मन रौ मनोरथ कोई फळतौ दीस नहीं । खोटी भावना क्यूं भावौ।
१८. काई श्रद्धौ ? - जोधपुर मै किण ही पूछ्यौ-विजैसिंग जी अमारी पड़हौ फैरायौ, तिण रौ कांई ?
जद हेमजी स्वामी बोल्या-ए मानसिंगजी जलंधरनाथजी री पूजा करे, तिणरौ थे कांई श्रद्धौ ? जब पाछौ शुद्ध जाब देवा असमर्थ ।