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हेम दृष्टीत १२. हिंसा सूं धर्म ऊठ गयो वीलावास मै एक देवरापंथी बोल्यौ-हिंसा बिना धर्म हुवै इज नहीं हिंसा बिना धर्म हुवै तौ बतावौ ? .
जद हेमजी स्वामी बोल्या-थे अठ बैठा हो अनै जावजीव नीलोती रा त्याग वैराग सू कीधा ओ धर्म थयौ के नहीं ? ... जद ओ बौल्यौ-ओ तौ धर्म थयो।
जद हेमजी स्वामी बोल्या-अठे कांई हिंसा हुई ? तथा थे वैराग सूं अठ बैठा इज शील आदर्यो औ धर्म तो थयौ, अने अठे कांइ हुई ? इम हिंसा विना धर्म हुवै । अने हिंसा मै धर्म होणौ तौ जिहां इ रह्यौ, हिंसा सूं धर्म ऊठे छ । किहां इ साध पधाऱ्या देखनै गृहस्थ राजी हुवौ । असणादिक वहिरावा उठ्यौ । हर्ष सूं आंवतां एक दाणा पर पग लागौ, तो साध वहिरै नहीं। इतरी हिंसा सूं इ धर्म ऊठ गयो।
१३. इतरौ फेर क्यूं ? पाली मै संवेगियां रा श्रावक बोल्या-"तीर्थकर होणहार नै वंदना करणी।"
जद हेमजी स्वामी बोल्या-थे प्रतिमा करावा पाषाण आण्यौ, ते पाषाण री प्रतिमा होणहार छै, ते पाषाण नै वांदी के नहीं ? जद जाब देवा असमर्थ थया।
बलि त्यांने कह्यौ-प्रतिमा थई पिण-प्रतिष्ठी नहीं, तो पिण तेहनै न वांदौ । अनै प्रतिष्ठयां पछै वंदौ, तौ प्रतिष्ठयां पहिला तो कांई गुण न हुँतौ ? अनै प्रतिष्ठयां पछै कांई गुण बध्यो ? तीर्थंकर नौ जीव तो नरकादिक मै पड्या तथा गर्भ मै छै, त्यांने पिण वांदौ अन जे पाषाण आण्यौ तेहनी प्रतिमा कीधी पिण प्रतिष्ठी नहीं, तौ पिण न वांदो, थारे लेखै इतरौ अन्तर क्यूं ? जिन प्रतिमा जिन सारखी, गिणौ तौ इतरौ फेर क्यूं ?
१४. म्हांनै असूझतौ लेणी नहीं हेमजी स्वामी गोचरी पधार्या । एक घर वहिरतां दूजा घरवाळी किंवाड़ खोल दीयौ उणनै पूछ्यां ते कहै म्हे कौई खोल्यौ नहीं। किंवाड़ री सांकळी हालती देखनै बोल्या-थे अबारू किंवाड़ खोल्यौ दीसै है, तिण सूं सांकळी हाल है, जद उवा बोली-थे तो यूं घणा करो, बीजा तो यूं करै नहीं।
जद हेमजी स्वामी बोल्या-म्हांनै असूझतौ लेणी नहीं।