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भिक्खु दृष्टांत
२५०. जितना हाथ लगे, उतना ही अच्छा
ढाई सौ बेला आदि तप की संपन्नता पर अपने-अपने समाज में लड्डू बंटवाते हैं। तब स्वामीजी बोले -- "ये अपने मतलब से लड्डू बंटवाते हैं । मन में जानते हैं, इनमें से हमें भी मिलेगा।"
तब किसी ने कहा - " स्वामीनाथ ! ये सभी लड्डू तो नहीं लेते ?" तब स्वामीजी ने दृष्टांत दिया - "एक साहूकार की बेटी का ब्याह हो रहा था । उस समय विवाह मंडप में ब्राह्मण ने वेदपाठ करते हुए अपनी लड़की के द्वारा घी चुरवाने के लिए एक धुन शुरू की
"घी चुरा, घी चुरा ।
घी चुरा, घी चुरा ।"
तब ब्राह्मण-पुत्री बोली“किसमें चुराऊं, किसमें चुराऊं ।
किसमें चुराऊं, किसमें चुराऊं ॥ " तब ब्राह्मण बोला
"नया छोटा घड़ा, नया छोटा घड़ा । नया छोटा घड़ा, नया छोटा घड़ा ||"
तब ब्राह्मण-पुत्री बोली-
"सुस जाएगा, सुस जाएगा ।
सुस जाएगा, सुरा जाएगा ।"
तब ब्राह्मण बोला
" तुम्हारे बाप का क्या जाएगा, तुम्हारे बाप का क्या जाएगा 1
तुम्हारे बाप का क्या जाएगा, तुम्हारे बाप का क्या जाएगा || "
उस समय गीत गाने वाली महिलाओं में एक जाटनी बैठी थी। वह घी चुराने की
धुन का अर्थ समझ गई । तब वह जाटनी अपने गीत में गाने लगी
"दुलहन के पिता, सुनो ! तुम्हारा घी चुराया जा रहा है ।"
तब ब्राह्मण ने धुन की लय में जाटनी से कहा
"तुम इस बात को मत फैलाओ, आधा तेरा और आधा मेरा ॥ "
स्वामीजी बोले – “जैसे उस ब्राह्मण ने नए शिकोरे में घी चुराया, वह जानता था
कि
उतना ही अच्छा है ।'
अमुक संप्रदाय के साधु
कुछ सुस जाएगा, फिर भी उसने सोचा, 'जितना हाथ लगे जाटनी को आधा घी देना भी स्वीकार कर लिया। इसी प्रकार अपने समाज में लड्डू बंटवाते हैं वे सब उन्हें भिक्षा में नहीं देते। उनमें से कुछ बच्चेबच्चियां खा जाते हैं । फिर भी सोचते । जितना मिला, उतना ही अच्छा ।" इस प्रकार अपने स्वार्थ पूर्ति की पद्धति चलाई है ।
२५१. अन्याय का प्रतिकार
जो न्याय की सीख नहीं मानता, कुटिल व्यवहार और अन्याय करता है, उसे पाठ पढाने के लिए स्वामीजी ने दृष्टांत दिया- " एक साहूकार की हवेली के सामने