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दृष्टांत : २४८-२४९
२१७ तब स्वामीजी दर्शन देने गए। स्थानक में जाकर साध्वियों से उनके बारे में
पूछा।
_____ तब साध्वियों ने बताया- “वे तो गोचरी गई हुई हैं।" तब स्वामीजी वापस आए।
तब आचार्य रुघनाथजी ने कहा- "दर्शन दे आए ?" .
तब स्वामीजी बोले-"मुझे कैसे पता चले वे किस 'मेडी" पर गोचरी कर रही हैं ? मैं कहां दर्शन देने जाऊं?" यह बात तब की है, जब स्वामीजी रुघनाथजी के संप्रदाय में थे।
२४८. धर्म हुआ या पाप ? कुछ हिंसाधर्मी कहते हैं-एकेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा पंचेन्द्रिय जीव पुण्यवान् होते हैं। इसलिए एकेन्द्रिय जीव को मार कर पंचेन्द्रिय जीव की रक्षा करने में बहुत धर्म होता है।
तब स्वामीजी बोले-"एकेन्द्रिय की अपेक्षा द्वीन्द्रिय के पुण्य अनंत गुना होता है। द्वीन्द्रिय को अपेक्षा त्रीन्द्रिय का पुण्य अनंत गुना होता है। श्रीन्द्रिय की अपेक्षा चतुरिन्द्रिय का पुण्य अनंत गुना होती है। चतुरिन्द्रिय की अपेक्षा पंचेन्द्रिय का पुण्य अनंत गुना होता है । कोई पंचेन्द्रिय जीव मर रहा हो, उसे पैसा भर कृमि खिला कर कोई बचा ले तो उस बचाने वाले को धर्म हुआ या पाप ?"
इस प्रकार पूछने पर वह उत्तर देने में असमर्थ हो गया।
स्वामीजी बोले--"जैसे द्वीन्द्रिय जीवों को मार कर पंचेन्द्रिय को बचाने में धर्म नहीं है, वैसे ही एकेन्द्रिय को मार कर पंचेन्द्रिय को बचाने में धर्म नहीं है।"
२४६. मैं तो ऐसा काम नहीं करूंगा? हिंसाधर्मी ने इस प्रकार कहा-"कोई आचार्य या उपाध्याय जैसा बड़ा साधु था । वह विषय-वासना के वश में होकर गृहस्थ होने लगा। तब किसी श्रावक ने अपनी बहिन-बेटी द्वारा उसकी वासना-पूर्ति करा कर उसे वापस साधुपन में स्थिर कर दिया। उससे उसे बड़ा लाभ हुआ।"
___ तब स्वामीजी बोले-"तुम्हारा गुरु भ्रष्ट हो रहा हो, तो तुम अपनी बहिन-बेटी के द्वारा उसकी वासना पूर्ति कराओगे या नहीं।"
तब वह बोला-"मैं तो ऐसा काम नहीं करूंगा।"
तब स्वामीजी बोले-"तुम इसमें धर्म बतलाते हो, तो फिर ऐसा काम क्यों नहीं करते ? तुम यदि ऐसा काम नहीं करते हो, तो दूसरे के किसके बहिन-बेटियां फालतू पड़ी हैं ?"
. "ऐसी औंधी प्ररूपणा तो कुशील और कुपात्र होते हैं, वे करते हैं ।"
१. मकान की ऊपर की मंजिल, माला या महल ।