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दृष्टांत : २०२
२०१ तब स्वामीजी बोले—'तुमने जो प्रश्न पूछा, उसे देखो, श्रावक ने सर्व पाप का त्याग कर दिया, तब वह साधु हो गया और साधु को देने में धर्म ही होता है।'
२०२. तीनों घर बधाइयां स्वामीजी स्थानकवासी संप्रदाय से अलग होकर नई दीक्षा लेने को तैयार हुए। तब अपने पास के साधुओं की प्रकृति की ओर ध्यान दिया । भारमलजी स्वामी के पिता किसनोजी थे, उनकी प्रकृति बहुत उग्र थी। वे आहार ज्यादा मंगवाते और वह अधिक मंगाई हुई रोटी साधारण होती, तो उसे नहीं लेते। अच्छी रोटी नहीं दी जाती, तो कलह करने लग जाते । तब बिलाड़ा में स्वामीजी ने भारमलजी स्वामी से कहा'तुम्हारा पिता तो साधुपन के योग्य नहीं है । उसे हम अलग कर देंगे । बोलो ! तुम्हारा क्या मन है ?
तब भारमलजी स्वामी ने कहा-'मुझे तो आपसे काम है ।' भापकी जैसी इच्छा हो वैसे करें।
स्वामीजी ने किसनोजी से कहा-अब तुम्हारा और हमारा पारस्परिक संबंध नहीं है।
यह सुन किसनोजी बोले-मैं अपने पुत्र को साथ ले जाऊंगा। तव स्वामीजी बोले-वह हमारे साथ न आए तो उसकी इच्छा।
तब किसनोजी जबरदस्ती से भारमलजी स्वामी को साथ ले दूसरी दुकान में चले गए । उन्होंने आहार पानी ला भारमलजी से आहार करने को कहा।
तब भारमलजी स्वामी ने कहा-मैं तो आहार पानी नहीं करूंगा।
वे प्रतिदिन मनुहार करते हैं पर भारमलजी स्वामी आहार नहीं करते। तीसरा दिन आया । तब मनुहार की।
तब भारमलजी स्वामी ने कहा-आपके हाथ से आहार करने का यावज्जीवन त्याग है।
तब किसनोजी ने भारमलजी स्वामी को स्वामीजी को सौंप दिया। बोले-यह आपसे ही राजी है । इसे आप अपने पास रखें । आपने नई दीक्षा नहीं ली तब तक मेरी भी कोई व्यवस्था कर दें।
तब स्वामीजी ने उन्हें आचार्य जयमलजी को सौंप दिया । तब जयमलजी बोले'भीखणजी की बुद्धि को देखो। किसनोजी को हमें सौंपा, इससे तीनों घर बधाइयां बटीं। हमने जाना, हमें एक चेला मिला। किसनोजी ने देखा, उन्हें स्थान मिल गया और भीखणजी ने देखा, उनकी आपदा टल गई।'
कुछ समय बाद किसनोजी आदि दो साधु मृत्यु-भोज से लपसी ला उसे खा, विहार कर गए। मार्ग में प्यास बहुत लगी। लपसी खाई हुई थी, गरमी के दिन थे । उन्होंने प्यास को सहा, पर सजीव जल नहीं पिया। आखिर किसनोजी काल कर गए।
मृत्युभोज से लपसी लाए, यह तो उनके संप्रदाय की रीति है। पर ये नियम में दृढ़ रहे, काल कर गए, पर सजीव जल नहीं पिया।