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स्थान पर था गए ।
भिक्खु दृष्ट
१६६. गुड़ कौन लाया ?
स्वामीजी जब स्थानकवासी संप्रदाय में थे, तब एक दरजी के घर गोचरी गए । तब वह दरजी बोला- 'तुम्हारा चेला कल गुड़ ले गया था, इसलिए आज तुम भिक्षा कैसे लोगे ?'
ae स्वामीजी ने स्थान पर आकर सब साधुओं से पूछा - 'कल अमुक दरजी के घर से गुड़ कौन लाया ?'
पर सब साधुओं ने इनकार कर दिया। बाद में स्वामीजी सब साधुओं को साथ लेकर दरजी के घर आए। उस दरजी से पूछा - ' कल जो गुड़ ले गया था, वह इनमें से कौन सा है, तुम पहिचान कर बताओ ।'
तब दरजी ने उस साधु की ओर इंगित किया, जो अवस्था में छोटा था, नाम था रायचंद और अमुक आचार्य का शिष्य था ।
'तब स्वामीजी ने जान लिया कि यही है जो गुड़ ले गया था, किंतु इसने स्वीकार नहीं किया । '
इस प्रकार स्वामीजी ने ठगी और झूठ को अनावृत कर दिया । २००. पत्र लिखना मत
पीपाड़ की घटना है । अन्य सम्प्रदाय का श्रावक मालजी स्वामीजी से चर्चा कर रहा था।
स्वामीजी ने पूछा- 'मालजी ! छह काय के जीवों को खाने से क्या होता
है ?'
तब उसने कहा - 'पाप होता है ।'
फिर स्वामीजी ने पूछा - 'छह काय के जीवों को खिलाने से क्या होता है ?' उसने कहा - 'पाप होता है ।'
तब स्वामीजी बोले- भारमलजी ! स्याही तैयार कर लिख लो - मालजी पानी पिलाने में पाप कहता है ।'
तब मालजी तेज स्वर में बोलने लगा - 'मैंने पानी पिलाने में पाप कब कहा ? '
तब स्वामीजी बोले - ' पानी छह काय के भीतर है या बाहर ?"
तब वह बोला-' है, है और है । पर मत लिखना, मत लिखना ।' इस प्रकार वह हतप्रभ होकर वहां से चला गया ।
२०१. अपने प्रश्न को देखो
स्वामीजी भीलवाड़ा में विराज रहे थे। वहां अन्य संप्रदाय के एक श्रावक ने स्वामीजी से पूछा - 'भीखणजी ! किसी श्रावक ने सर्व पापों का त्याग कर दिया, उसे बाहार -पानी देने में क्या होगा ?"
तब स्वामीजी बोले- 'धर्म होगा ?'
तब उसने कहा - 'श्रावक को देने में आप तो पाप मानते हैं, फिर आपने धर्म कैसे
कहा ?"