________________
दृष्टांत : १९५
१९७ मेरे सन्देहों का समाधान सीमंधर स्वामी करेंगे। पन्द्रह दिन के अनशन के पश्चात् उसका देहावसान हो गया।
१९५. स्वच्छंदचारी होना श्रेय नहीं चंद्रमाणजी संघ से अलग होने लगे, तब स्वामीजी ने कहा-'संलेखना और अनशन करना श्रेय है, परन्तु साधु-संघ को छोड़ स्वच्छंदचारी होना श्रेय नहीं।
तब वे बोले---'मैं और भारीमाल दोनों संलेखना शुरू करें।' तब स्वामीजी बोले-'अपन दोनों करें।
तब चंद्रभाणजी बोले-'आपके साथ तो नहीं करूंगा। भारमलजी के साथ कर सकता हूं।'
स्वामीजी ने फिर अपना संकल्प दोहराया-'अपन दोनों करें।'
फिर चंद्रभाणजी और तिलोकचंदजी दोनों मान-अहंकार के वशीभूत हो संघ से अलग हो गए । उसका विस्तार स्वामीजी कृत 'रास' से जान लेना चाहिए । वे जाते समय बोले -'लोगों में साख तो हमारी ही घटेगी पर आपके श्रावकों को तो शीतदाह से जले हुये आक के समान करूं, तो समझना मेरा नाम चंद्रभाण है।
तब चतरोजी श्रावक बोला-"तुम थोड़ी दूर जाओ, मैं सन्देश-वाहक भेज कर गांव-गांव में सन्देश पहुंचा दूंगा। कोई भी तुम्हें अन्तःकरण से नहीं चाहेगा-कोई तुम्हारा साथ नहीं देगा। फिर शीतदाह से जले हुये आक जैसे तुम ही बनोगे।"
बाद में वे वहां से चल पड़े। कुछ दूर जाने पर उन्हें आचार्य रुघनाथजी मिले। उन्होंने कहा -'तुम हमारे साथ आ जाओ। हम तुम्हारी रीति को मान्यता देंगे।' उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।
० भीखणजी तो विद्यमान हैं ? फिर किसी ने रोयट के श्रावकों से कहा- "चंद्रभाण और तिलोकचंद दोनों पढेलिखे साधु भीखणजी के संघ से अलग हो गए हैं।"
तब श्रावक बोले-'भीखणजी तो विद्यमान हैं ?' "वे तो हैं।"
तब वे श्रावक बोले--"भीखणजी हैं, तो पढे-लिखे साधु और बहुत हो जाएंगे। वे निकल गए, उससे किञ्चित् भी अन्तर आने वाला नहीं है।"
• आपने भारी निर्णय किया। स्वामीजी ने अनुभव किया-ये लोगों में निंदा करेंगे, आस्था उतारने का प्रयत्न करेंगे। यह संघ के हित में नहीं होगा। इस दृष्टि से स्वामीजी ने उनकी पीछे-पीछे विहार किया । फलतः स्वामीजी को एक वर्ष में सातसो कोस (लगभग २२४० किलो मीटर) चलना पड़ा। ठेट चूरू तक पधारे। श्रद्धालु क्षेत्रों में कहीं भी उनके पैर जमे नहीं। उन दोनों ने अपने विहार के दौरान अनेक प्रवंचनाएं की—जिस गांव में जाना होता उस गांव का मार्ग नहीं पूछते और दूसरे गांव का मार्ग पूछते और ऐसा इसलिए करते कि हम जिन गांवों में जाएं, उन गांवों में भीखणजी स्वामी न आए। पीछे से स्वामीजी पधारते और लोगों को पूछते-'वे कौन से गांव गए हैं ?'