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भिक्षु दृष्टांत मानो विजयचन्दजी पटवा क्षायक सम्यक्त्व के धनी हैं। कुछ लोग साधुओं में अनेक दोष बतलाते हैं, इन्हें सुनाते हैं, पर वे उन दोषों के बारे में साधुओं को पूछते तक नहीं। ऐसे हैं वे दृढधर्मी।
१८६. मुझे पता नहीं चला एक दिन सांझ के समय विजयचन्दजी स्वामीजी के पास सामायिक और प्रतिक्रमण करने आए। आकाश में बादल छाए हुए थे, इसलिए कितना दिन शेष है। इसका पता नहीं चल रहा था। तब उन्होंने स्वामीजी से प्रार्थना की-“महाराज! आप पानी पी, उसे चुकता कर दें।"
तब स्वामीजी ने पानी पी उसे चुकता कर दिया। बाद में धूप निकली। दिन काफी शेष था। तब स्वामीजी बोले-"साधुओं को रात्रि में पानी नहीं पीना है । गृहस्थ के रात्रि में पानी पीने का त्याग नहीं होता। इसलिए वे रात को पानी पी लेते हैं।"
यह सुनकर विजयचन्दजी स्वामीजी के चरणों में गिर पड़े और बोले ---“हे महापुरुष ! आप अवसर के जानकार हैं, पर मुझे उसका पता नहीं चला।" · ऐसे थे वे साधुओं के विनीत । उन्होंने स्वामीजी के सामने बहुत विनम्रता की।
१८७. जहां उपकार हो, वहां कष्ट क्या ? नानजी स्वामी ने हेमजी स्वामी से कहा-हेमजी ! भीखणजी स्वामी हम साधुओं को दुकान में बिठाते और गाने में स्वर मिलाने वाले भाई हमारे इधर-उधर बैठ जाते । पसीना बहुत आ जाता।
स्वामीजी कहते----जहां उपकार हो, वहां कष्टों की कोई चिन्ता नहीं।
गर्मी के दिनों में और चतुर्मास में सिरियारी की पक्की हाटों में स्वामीजी व्याख्यान देते थे। भीखणजी स्वामी और भारमलजी स्वामी आगे साथ-साथ बैठते और उनके पार्श्व में गाने में स्वर मिलाने वाले भाई बैठते । दूसरे साधु हाट के भीतर बैठते। गर्मी का बहुत कष्ट था। इस प्रकार कष्ट सहकर उपकार किया।
१८८. जितना पचा सके उतना दो सम्वत् १८५६ की घटना है। स्वामीजी ने पांच साधुओं के साथ नाथद्वारा में चतुर्मास किया। भारमलजी स्वामी, खेतसीजी स्वामी और हेम राजजी स्वामी तीनों एकान्तर (एक दिन उपवास और एक दिन आहार) करते थे। स्वामीजी अष्टमी और चतुर्दशी को उपवास करते थे। उदरामजी स्वामी बेले-बेले की तपस्या करते और पारणा में आयंबिल (केवल एक अन्न और जल) करते। ___ खेतसीजी स्वामी उदरामजी को आहार अधिक देते, तब स्वामीजी ने उन्हें बरजा और कहा-"उदैरामजी के दो दिन के उपवास का पारणा है । ये जितना आहार पचा सके, उतना ही दो।" स्वामीजी के कहने पर भी खेतसीजी स्वामी उदरामजी को अधिक आहार देने की चेष्टा करते। यह देख स्वामीजी ने कहा-“खेतसीजी ! उदैरामजी की मृत्यु तुम्हारे हाथों होगी, ऐसा लगता है।"