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दृष्टांत : १७८-१७९
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के लिए कठिन होगा। यह सामने बोलने वाली है। ऐसा सोच उसे संघ से अलग करने का उपाय खोजा और बड़ी चतुराई के साथ परोक्ष में ही संघ से अलग कर दिया।
१७८. यह सच्चा है या झूठा ? 'भगवान महावीर में जब छहों लेश्याएं थीं और आठों ही कर्म थे, तब उस छद्मस्थ अवस्था में भगवान् ने लन्धि का प्रयोग किया। इस प्रमाद को मूर्ख व्यक्ति धर्म बतलाते हैं।
स्वामीजी ने जब इस गाथा की रचना की भारमलजी स्वामी ने कहा-'छद्मस्थ चुका तिण समे' - इस पद को आप बदल दें। इस पद को लेकर लोग झगड़ा कर सकते हैं।
तब स्वामीजी बोले-यह पद सच्चा है या झठा ? तब भारमलजी स्वामी बोले-है तो सच्चा ।
तब स्वामीजी बोले यदि यह सच्चा है तो फिर लोगों की क्या चिन्ता ! न्यायमार्ग पर चलने में कोई आपत्ति नहीं है ।
१७६. बीच में बोलने की जरूरत ही क्या ? संवत् १८५३ को घटना है। स्वामीजी ने सोजत में चतुर्मास किया। उसके बाद विहार करते-करते मांढा में पधारे ।
हेमजी स्वामी तब गृहस्थावस्था में थे। स्वामीजी के दर्शन करने सिरियारी से मांढा गांव में आए । पोल के चबूतरे पर स्वामीजी सो रहे थे और नीचे खाट डाल कर हेमजी स्वामी सो गए। उस समय स्वामीजी और साधु परस्पर साधु-साध्वियों को विभिन्न क्षेत्रों में भेजने की बात कर रहे थे---अमुक साधु को अमुक गांव भेजना और अमुक साधु को अमुक गांव भेजना । परंतु सिरियारी में किसी साधु या साध्वी को भेजने की बात नहीं की।
तब हेमजी स्वामी बोले-स्वामीनाथ ! सिरियारी में किसी साधु-साध्वी को भेजने की बात ही नहीं की ?
___ तब स्वामीजी ने उन्हें कठोर शब्दों में उलाहना दिया। आपने साधुओं से कहागृहस्थों के सुनते हुए ऐसी बात ही नहीं करनी चाहिए । हेमजी स्वामी की ओर अभिमुख होकर कहा- तुम्हें साधुओं की बातचीत के बीच में बोलने की जरूरत ही क्या ? यह बात हेमजी स्वामी को बहुत कड़ी लगो । वे मौन साध कर सोते रहे ।
मेरे जीते जी साधु बनेगा या.......? प्रभात हुआ । हेमजी स्वामी दर्शन कर सिरियारी की ओर जाने वाले नीमली के मार्ग से चले और स्वामीजी ने मांढा से कुशलपुर की ओर विहार किया। आगे जाते समय स्वामीजी को अपशकुन हुए। तब वे वापस मुड़ नीमली की ओर चल पड़े । हेमजी स्वामी तो धीमे-धीमे चल रहे थे और स्वामीजी की रफ्तार तेज थी। वे हेमजी स्वामी के निकट पहुंच गए। पीछे से उन्होंने पुकारा-हेमड़ा ! हम भी आ रहे हैं यह सुन हेमजी स्वामी खड़े रहे और उन्होंने स्वामीजी को वंदना की। __तब स्वामीजी बोले-माज तो हम तुम पर ही आए हैं।