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भिक्खु दृष्टांत
तब स्वामीजी बोले- तू पूछता है इसमें कोई आपत्ति नहीं है । इस खिड़की को खालने में कोई आपत्ति होगी तो हम क्यों खोलेगे ?
१७३. अंधे ही खाने वाले और अंधे ही परोसने वाले
जिनका आचार त्रुटिपूर्ण है और मान्यता भी त्रुटिपूर्ण है, ऐसे ही सम्यकदृष्टि हीन गुरु और ऐसे ही श्रद्धा भ्रष्ट और सम्यकदृष्टि हीन श्रावक । वे कहते हैं हमें भीखणजी साधु और श्राव+ नहीं मानते ।
तब स्वामीजी बोले - कोयलों की 'राब' बनाई । उसे काले बर्तन में पकाया । अमावस की रात । अंधे ही खाने वाले और अन्धे परोसने वाले । वे खाते हैं और एकदूसरे को सावधान करने के लिए खंखारते हुए कहते हैं - खबरदार कोई काली चीज खाने में न आ जाए । पर कौन क्या टाले ? सब कुछ काला ही काला इकट्ठा हो रहा है।
इसी प्रकार जिनकी मान्यता और आचार का कोई ठिकाना नहीं है, वे साधु और श्रावक कैसे होंगे ?
१७४. डंडे भी नहीं दिख रहे हैं
अन्य सम्प्रदाय के कुछ श्रावक बोले- भीखणजी ! इस बात का तार (निष्कर्ष ) निकालें ।
तब स्वामीजी बोले- तार क्या निकालें, डंडे भी दिखाई नहीं दे रहे हैं । जैसे धर्म (साधु-निमित्त बने हुए) आदि बड़े दोष भी दिखाई नहीं दे रहे हैं तो छोटे दोषों की खबर कैसे पड़ेगी ?
१७५. उतना बचा जो ढक्कन में समा गया
जिधर हवा का वेग था उधर एक बुढ़िया ने चक्की चलाना शुरू किया । वह जैसे पीसती है वैसे ही आटा उड़ता जाता है। उसने रात भर पीसा और उतना ही बचा जो ढक्कन में समा गया ।
इसी प्रकार जो साधुपन और श्रावकपन को स्वीकार कर, जान जान कर दोष लगाते हैं और उसका प्रायश्चित्त करते नहीं, उनके शेष कुछ बचता नहीं । १७६. दंड तो गांव ही दे रहा है
साध्वियों ने स्वामीजी के निर्देश के बिना धामली गांव में चतुर्मास किया। वहां आहार- पानी मिलने में बहुत कठिनाई रही ।
किसी ने स्वामीजी से पूछा - साध्वियों ने आपके निर्देश के बिना धामली में चतुर्मास किया है उन्हें आप क्या दंड देंगे ?
तब स्वामीजी बोले- प्रथम तो उन्हें वह गांव दंड दे ही रहा है । ( बचा खुचा दंड वे आएंगी तब देगे ।) चतुर्मास के बाद जब वे साध्वियां आईं तब उन्हें प्रायश्चित्त देकर शुद्ध कर दिया ।
१७७. सामने बोलने वाली है
धन्नाजी की कठोर प्रकृति को देख स्वामीजी ने सोचा, इसे निभाना भारमलजी