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दृष्टांत : १२६-१२९
१७३ १२६. मिश्र धर्म की मान्यता ____ जो सजीव पानी पिलाने में पुण्य मानते हैं, वे पुण्य की मान्यता वाले बोलेभीखणजी ! मिश्र धर्म की मान्यता बहुत खराब है।
तब स्वामीजी बोले-किसी की एक आंख फूटी और किसी की दोनों ही फूट गई । इसी प्रकार उनकी एक आंखफूटी है और तुम्हारी दोनों ही आंखें फूट गई हैं ।
१२७. हिंसा होने वाली है आचार्य रुघनाथजी के लोग बोले --भीखणजी ! देखो, जोधपुर में जयमलजी वालों के स्थानक आधाकर्मी हैं । उसमें हिंसा बहुत हुई है।
तब स्वामीजी बोले- उनके तो हिंसा हुई है और दूसरों के हिंसा होने वाली है । लगता है कच्चे मकान पक्के बनेंगे ।
१२८. मरने वाला डूबता है या मारने वाला किसी ने पूछा-भीखणजी ! किसी मनुष्य ने मरते हुए बकरे को बचाया, उसमें क्या हुआ ?
तब स्वामीजी बोले--ज्ञान से समझा-बुझा कर हिंसक को हिंसा से बचाने में धर्म होता है । स्वामीजी ने दो अंगुलियों को ऊपर कर कहा-- कल्पना करो यह एक अंगुली राजपूत और दूसरी अंगुली बकरा । इन दोनों में कौन डूबता है ? मरने वाला डूबता हैं या मारने वाला ? नरक-निगोद में कौन गोता लगाएगा ? __ तब वह बोला-मारने वाला डूबेगा । ___ तब स्वामीजी बोले - साधु डबने वाले को तारते हैं, राजपूत को समझाते हैंबकरे को मारने से तुझे संसार समुद्र में गोता लगना पड़ेगा। इस प्रकार उसे ज्ञान से समझा-बुझाकर हिंसा से बचाना मोक्ष का मार्ग है । परन्तु साधु बकरे के जीने की इच्छा नहीं करता।
जैसे एक साहूकार के दो लड़के हैं । एक लड़का अधिक ब्याज लेने वाले से ऋण लेता है और दूसरा लड़का उसके ऋण को चुकाता है, पिता किसे वर्जेगा ? ऋण लेने वाले को बर्जेगा, उतराने वाले को नहीं वर्जेगा । इसी प्रकार साधु पिता के समान है। राजपूत और बकरा-ये दोनों पुत्र के समान हैं । इन दोनों में कर्म रूपी ऋण को कौन सिर पर चढ़ाता है ? और कर्म रूपी ऋण को कौन चुकाता है ! राजपूत तो कर्म रूपी ऋण सिर पर चढ़ाता है और बकरा अपने किए हुए कर्मों को भोग अपना ऋण चुकाता है । साधु राजपूत को बजते हैं-तुम कर्म रूपी ऋण को सिर पर मत चढ़ाओ। कर्म का बंध करने पर तुम्हें संसार-समुद्र में बहुत गोता लगाना पड़ेगा । इस प्रकार राजपूत को समझा-बुझाकर उसे हिंसा से बचाते हैं ।
- १२६. उपकार : संसार का या मोक्ष का संसार के उपकार और मोक्ष के उपकार पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया-किसी को सर्प काट गया । गारुडिक ने झाडा देकर उसे बचा लिया । तब वह चरणों में सिर झुका कर बोला- इतने दिन तो जीवन माता-पिता का दिया हुमा था मोर माज से