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भिक्खु दृष्टांत तो अनशन कर नहीं सकता। वह ऐसी बात कर रहा था और उसी रात्रि में उसका देहावसान हो गया।
१२२. साधु के बीमारी क्यों ? किसी ने पूछा-महाराज ! साधुओं के बीमारी क्यों होती है ?
स्वामीजी बोले--किसी आदमी ने पत्थर को आकाश की ओर उछाला, शिर उसके नीचे कर दिया, भविष्य में पत्थर उछालने का परित्याग किया, किन्तु पहले जो पत्थर उछाला है उसकी चोट तो लगेगी ही। फिर पत्थर नहीं उछालेगा तो चोट नहीं लगेगी। ऐसे ही पाप-कर्म का बन्धन किया उसको तो भुगतना ही पड़ेगा, पीछे पाप का त्याग कर लिया तो उसे दुःख नहीं भुगतना पड़ेगा।
१२३. चर्चा कैसे करें? सीहवा गांव के वासी दामोजी ने पाली में अन्य संप्रदाय के साधुओं के स्थानक में जा उनसे चर्चा की। उसने कुछ प्रश्नों के उत्तर दिए और वह कुछ प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सका फिर उसने स्वामीजी से कहा-मैंने चर्चा की पर उनके प्रश्नों का पूरा उत्तर नहीं दे सका।
__ तब स्वामीजी बोले --दामाशाह ! जीर्ण-शीर्ण धनुष्य और दो-तीन बाण लेकर युद्ध शुरू करने वाला कैसे जीतेगा ? तीरों से भरा तरकश पीठ पर बन्धा हो तभी युद्ध में कोई जीत सकता है। इसी प्रकार मन्य संप्रदाय वालों से चर्चा करनी हो तो पूरे उत्तर देना सीख कर ही करनी चाहिए। यदि वैसा न हो तो नहीं करनी चाहिए।
१२४. उसके हाथ में क्या आया? किसी ने पूछा-भीखणजी ! कोई बालक पत्थर से चींटियां मार रहा था। उसके हाथ से पत्थर छीन लिया, उसे क्या हुमा ?
तब स्वामीजी बोले-उसके हाथ में क्या आया ? तब वह बोला-उसके हाथ में तो पत्थर आया। तब स्वामीजी बोले-अब तुम ही सोच लो। .
१२५. आपका नाम क्या है ? स्वामीजी पुर और भीलवाड़ा के बीच में थे। वहां ढंढाड से आया हुआ एक आदमी मिला। उसने पछा-आपका नाम क्या है ?
तब स्वामीजी बोले-मेरा नाम भीखण है ।
तब वह बोला-भीखणजी की महिमा तो बहुत सुनी है। फिर आप अकेले ही वृक्ष के नीचे कैसे बैठे हैं ? हमने तो जान रखा था कि आपके साथ बहुत आडंबर होगा, घोड़े, हाथी, रथ, पालकी आदि बहुत ठाठ बाट होगा। ___तब स्वामीजी बोले-हम ऐसा आडम्बर नहीं रखते तभी हमारी महिमा है । साधु का मार्ग यही है। _. यह सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुआ।