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________________ १६४ भिक्खु दृष्टांत (संन्यासी) बना दिया। तब उस अन्य संप्रदाय के साधु ने स्वामीजी के पास आकर पूछा-आप कितनी मूर्तियां हैं ? तब स्वामीजी बोले- वह अवसर तो उसी समय था । हम तो इतने साधु हैं । १०३. भीखणजी ! तुम भी लोटे को मांजो स्वामीजी के गृहस्थ जीवन की घटना है। एक दिन वे शौच के लिये जंगल जा रहे थे तब सोजत का महाजन साथ में हो गया। वापस लौटे तब सोजत का महाजन लोटे को बार-बार मांजता है और सजीव जल से बार-बार धोता है। उसने कहाभीखणजी ! तुम भी लोटे को मांजो । तब स्वामीजी बोले-मैं तो लोटे में जंगल नहीं गया था । मैं तो लोटे से दूर जंगल गया था। तब वह बोला-मैं कौन-सा लोटे में गया था ? तब स्वामीजी बोले ....तब लोटे को इतना क्यों मांजते हो ? वह बोला -- लोटा पास में था। स्वामीजी बोले -- तुम्हारा मुंह और सिर भी पास में था। इन्हें मांजते हो या नहीं? १०४. हमने तो थाली के दो टुकड़े नहीं किए अन्य सम्प्रदाय के साधुओं ने कहा - भीखणजी जब घर में थे और अपने भाई से अलग हुए तब बटवारे के लिए एक थाली को ऊखल में डाल उसके दो टुकड़े कर डाले। हेमजी स्वामी ने स्वामीजी से यह बात पूछी-जब आप घर में थे तब आपने थाली के दो टुकड़े किए यह बात सच है या झूठ ? तब स्वामीजी बोले हम तो ऐसे भोले नहीं थे कि पहले ही रुपये का पौन रुपया कर डालें। हमने तो ऐसा नहीं किया। पर अमुक आचार्य के गुरु, जब घर में थे तब ऊंट को मार डाला । वे किसी दूसरे गांव से वस्त्र की गांठें ला रहे थे। रास्ते में डकैत मिल गए । तब उन्होंने सोचा .... ये डाकू कपड़ा छीन लेंगे और ऊंट को भी ले जायेंगे । यह सोच कर उन्होंने तलवार से ऊंट की टांगे काट कर उसे मार डाला । गृहस्थावस्था की क्या बात ? (वहां कुछ घटनाएं हो भी सकती हैं। फिर भी हमने तो घर में रहते हुए थाली के दो टुकड़े नहीं किए। १०५. जब स्त्रियां गाने लगी स्वामीजी घर में थे तब भोजन करने के लिए ससुराल में गए । स्त्रियां 'गालियां' गाने लगीं.--'यह कौन है काला और चितकबरा।' तब स्वामीजी बोले- तुम लंगड़े और अंधे को तो अच्छा बतलाती हो और मेरे विषय में उल्टा गा रही हो। स्वामीजी का साला लंगड़ा था। इस दृष्टि से स्वामीजी ने कहा- तुम कुडौल को सुडौल और सुडौल को कुडौल बता रही हो । यह कहते हुए स्वामीजी भोजन किए बिना भूखे ही उठ गए। गृहस्थावस्था में भी उन्हें झूठ से चिढ़ थी । उन्हें झूठ अच्छा नहीं लगता था ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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