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दृष्टांत : ९९-१०२
९. मूल्यांकन तुम कर लेना
किसी ने पूछा -- इतने संप्रदाय हैं उनमें साधु कौन और असाधु कौन ?
तब स्वामीजी बोले- किसी को आंखों से दिखाई नहीं देता । उसने वैद्य से पूछा - शहर में नंगे कितने हैं और वस्त्र पहने कितने हैं ?
तब वैद्य बोला- आंखों में दवा डाल कर तुम्हारी दृष्टि मैं लौटा दूंगा, फिर तुम्हीं देख लेना कितने नंगे हैं और कितने वस्त्र पहने हैं ।
इसी प्रकार पहचान तो हम बतला देते हैं, फिर इसका निर्णय तुम स्वयं कर लेना ।
किसी का भी नाम लेकर असाधु कहने से वह झगड़ा करने लग जाता है । इसे ध्यान में रख कर साधु-असाधु के लक्षण तो हम दे देंगे, उनका मूल्यांकन तुम कर लेना । १००. साधु कौन ? असाधु कौन
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एक बार फिर किसी ने पूछा- इन (अमुक-अमुक संप्रदायों) में साधु कौन और असाधु कौन ?
साधु कौन और साधु कौन
तब स्वामीजी बोले -- किसी ने पूछा, शहर में साहूकार कौन और दिवालिया कौन ? एक समझदार आदमी ने उत्तर दिया- ऋण लेकर लौटा देता है, वह साहूकार और ऋण को नहीं लौटाता तथा मांगने पर झगड़ा करता है, वह दिवालिया ।
इसी प्रकार पांच महाव्रतों को स्वीकार कर उनकी सम्यक् पालना करता है वह साधु और जो उनकी सम्यक् पालना नहीं करता वह असाधु है ।
हो ?
१०१. मेरे तो प्राण जा रहे हैं
कोई बोला - अनुकंपा ला कच्चा जल पिलाने से पुण्य होता है, क्योंकि उसका परिणाम (भाव) अच्छा है, जीव को बचाने का है, किन्तु जल के जीवों की हिंसा करने का नहीं है ।
तब स्वामीजी बोले - एक आदमी दूसरे को कटारी से मारने लगा । तब वह बोला- मुझे मत मार ।
तब मारने वाला बोला- मेरा तुझे मारने का भाव नहीं है। मैं तो कटारी का मूल्यांकन कर रहा हूं-- इस कटारी में कितनी मारक क्षमता है ।
तब वह बोला - समुद्र में डूब जाए तुम्हारा मूल्यांकन मेरे तो प्राण जा रहे हैं । इसी प्रकार जीवों को खिलाने-पिलाने में जो पुण्य कहते हैं उनकी मान्यता सही
नहीं है ।
१०२. वह अवसर तो स्वामीजी ने अन्य संप्रदाय के साधुओं के
उसी समय था
स्थान पर पूछा- तुम कितनी मूर्तियां
तब उन्होंने कहा - हम इतनी मूर्तियां हैं ।
स्वामीजी अपने स्थान पर आ गए ।
पीछे से किसी व्यक्ति ने उन साधुओं से कहा- तुम्हें तो भीखणजी ने 'भगत'